एक बहु-वर्षीय अध्ययन के अनुसार जो बच्चे अपने बचपन के शुरुआती वर्ष में अध्यन की आदत रखते हैं, उनमें वयस्कता में बेहतर मानसिक और संज्ञानात्मक क्षमताएं होने की अधिक संभावना होती है।
इस संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 10,000 लोगों पर शोध किया गया है, जिसमें शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध के पुख्ता सबूत मिले हैं। साइकोलॉजिकल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ चीन और यूनाइटेड किंगडम के बच्चे भी शामिल थे।
इस संबंध में 10 हजार से ज्यादा बच्चों पर अध्ययन किया जा चुका है। ऐसा पाया गया है कि जो बच्चे शुरुआती दिनों में सप्ताह में 12 घंटे पढ़ाई में बिताते हैं, उनके मस्तिष्क के सर्किट और संरचना इस तरह बदल जाते हैं कि इससे मानसिक क्षमता बढ़ सकती है। सबसे बड़ी बात यह कि इसका असर लंबे समय तक रहता है।
बच्चों को दो से नौ वर्ष की आयु के बीच पढ़ाई की आदत सिखाई जानी चाहिए। इस उम्र में पढ़ना फायदेमंद होता है।
फिर पढ़ने से शब्दावली और दुनिया के बारे में बच्चों की समझ का विस्तार होता है। इसका कारण यह है कि हमारे मस्तिष्क का निर्माण बचपन में होता है जिसमें कहानियों से लेकर सामान्य किताबें पढ़ना अहम भूमिका निभाता है। यह मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखता है और ये प्रभाव लंबे समय तक रहता है।
अमेरिकी, चीनी और ब्रिटिश विशेषज्ञों ने किशोर मस्तिष्क और संज्ञानात्मक विकास (एबीसीडी) अध्ययन के तहत हजारों बच्चों के डेटा का अध्ययन किया है। डेटा में साक्षात्कार, अधिग्रहण परीक्षण, मानसिक, व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी शामिल थे। इसके अलावा प्रतिभागियों से साक्षात्कार भी लिया गया।
संक्षेप में, बच्चों को दो से नौ वर्ष की आयु के बीच पढ़ाई की आदत सिखाई जानी चाहिए। इस उम्र में पढ़ना फायदेमंद होता है, लेकिन इसके बाद फायदा कम हो जाता है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन बच्चों ने दो से नौ साल की उम्र के बीच पढ़ाई की आदत अपनाई, उनमें तनाव और अवसाद भी कम हुआ। दूसरी ओर, उनके मस्तिष्क की संरचना थोड़ी बेहतर थी। सबसे बढ़कर, सोचने, सीखने और सीखने से जुड़े मस्तिष्क के हिस्से बढ़े हुए देखे गए।