शोध बताता है कि इंसान के मुंह से निकलने वाली सबसे शुरुआती आवाजें लगभग 70 हजार साल पहले ही निकली थीं।
कहते हैं बालकों ने उस वृक्ष को काट डाला, जिस पर एक पक्षी रहता था और उसका घोंसला तबाह कर डाला।
“वृक्ष, तुम्हे क्यों काट डाला गया?”
“क्योंकि मैं बेज़बान हूं।”
“पक्षी, तुम्हारा घोंसला क्यों बर्बाद कर दिया गया?”
“क्योंकि मैं बहुत बकबक करता था।” (रसूल हमज़ातोव की किताब ‘मेरा दाग़िस्तान’ से)
वह शब्द ही हैं जिनके बोलने या न बोलने पर बहुत कुछ घटता है। कहाँ से आये ये शब्द? इनका इतिहास भूगोल और व्याकरण सदा से इंसानी दिमाग़ों में कुलबुलाने वाला सवाल रहा है। मगर इसका जवाब हमेशा या तो मिल न सका या फिर गोल मोल रहा। जॉर्ज पॉलस इस समय यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ में प्रोफेसर एमिरेट्स हैं और ऐसे ही सवालों के जवाब की खातिर उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया है। फोनेटिक्स और लिंग्विस्टिक के क्षेत्र में रूचि रखने वाले पॉलस ने अफ्रीकी भाषाओं के वर्णनात्मक विश्लेषण में विशेषज्ञता हासिल की है। इन विषयों पर उनके बेशुमार लेख और पर्चे हैं। द कन्वर्सेशन में प्रकाशित ये लेख भाषा की और बारीक पड़ताल के साथ जॉर्ज पॉलस की किताब ‘ऑन द ओरिजिन्स ऑफ़ ह्यूमन स्पीच एंड लैंग्वेज’ उन तमाम सवालों के जवाब प्रस्तुत करती है, जिसमें भाषा के इस सफ़र की जानकारी मिलती है।
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