अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन का कहना है कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन से दुनिया भर के 1.6 अरब मजदूर प्रभावित हुए हैं और इनके सामने गरीबी में धंसने का खतरा 52 फीसदी तक बढ़ गया है। आईएलओ की रिपोर्ट कहती है कि इन मजदूरों के सामने यही कशमकश है कि वे कोरोना के शिकार होंगे या भूखमरी के।
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन और कंटेनमेंट जोन बनाए जाने से दुनिया भर के गैर संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कुल 2 अरब मजदूरों में से करीब 1.6 अरब मजदूरों के सामने गरीबी में धंसने और भूखमरी का खतरा खड़ा हो गया है। यह बात अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कही है जो उसने 8 मी को जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना लॉकडाउन के कारण दुनिया भर के गैर संगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजूदरों की रोजी-रोटी छिन गई है। कम आदमनी वाले देशों में इन मजूदूरों में से करीब 56 फीसदी बुरी तरह गरीबी में जकड़ जाएंगे।
आईएलओ की रिपोर्ट इस लिंक में पढ़ी जा सकती है : https://www.ilo.org/wcmsp5/groups/public/—ed_protect/—protrav/—travail/documents/briefingnote/wcms_743623.pdf
आईएलओ ने साथ ही उच्च आय वाले देशों में इस आंकड़े को 52 फीसदी तक बताया है। वहीं मध्य आय वाले देशों में यह आंकड़ा 21 फीसदी तर हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के गैर संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कुल 2 अरब मजदूरों में से 1.6 अरब मजदूर लॉकडाउन से प्रभावित हुए हैं और ये मजदूर वे हैं जो उन सेक्टर में काम करते हैं जिन पर लॉकडाउन का सर्वाधिक असर हुआ है।
आईएलओ के मुताबिक लॉकडाउन से प्रभावित होने वाले सेक्टर में होटल और रेस्त्रां कारोबार, मैन्यूफैक्चरिंग, होलसेल और रिटेल कारोबार शामिल हैं। साथ ही करीब 5 करोड़ ऐसे किसान भी प्रभावित हैं जो मुख्यत: शहरी बाजारों के लिए फसलों का उत्पादन करते हैं। आईएलओ के मुताबिक इस सबसे महिला मजदूर सर्वाधिक प्रभावित हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक इन मजदूरों के सामने अपने परिवार का पेट भरने का संकट आ खड़ा हुआ है। इन कारणों से कोरोना वायरस को रोकने के सरकारी उपायों पर भी असर पड़ रहा है क्योंकि मजदूरों का आना-जाना भी जारी है। रिपोर्ट के मुताबिक जिन देशों में गैर संगठित क्षेत्र का आकार बड़ा है वहां आने वाले दिनों में सामाजिक तनाव भी देखने को मिल सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार करीब 75 फीसदी कारोबारों में 10 से कम मजदूरों या कामगारों से काम चलाया जाता है, साथ ही करीब 45 फीसदी छोटे और मझोले कारोबार ऐसे हैं जिनके पास कोई कर्मचारी या मजदूर या कामगार नहीं होता। लॉकडाउन के कारण चूंकि इस क्षेत्र के पास रोजी-रोटी का और कोई साधन नहीं रहा है तो इनके सामने यही विकल्प रह गया है कि वायरस से ज्यादा खतरा है या भूखमरी से।
अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के मुताबिक दुनिया भर मे करीब 6.7 करोड़ घरेलू सहायक काम करते हैं, जिनमें से 75 फीसदी गैर संगठित हैं, और इनके लिए बेरोजगारी का खतरा भी उतना ही बड़ा है जितना कि वायरस का। इनमें से बड़ी तादाद में लोग काम नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि या तो उनके नियोक्ता ने काम पर आने से मना कर दिया है या फिर वे लॉकडाउन के कारण बाहर नहीं जा सकते। जो भी लोग काम पर जा भी पा रहे हैं, उनके लिए वायरस की चपेट में आने का खतरा भी बढ़ गया है। इसके अलावा करोड़ों प्रवासी मजदूरों की स्थिति तो और भी भायवह है।
आईएलओ की इनवर्क ब्रांच के प्रमुख फिलीप मार्कडेंट का कहना है कि, “कोरोना संकट ने पहले से मौजूद असमानता को और भी बढ़ा दिया है। ऐसे में सरकारों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी ताकि इन मजदूरों तक पर्याप्त और समय रहते सही मदद पहुंच सके।”
आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक इस संकट का सर्वाधिक प्रभाव उन देशों पर पड़ा है जिन्होंने पूर्ण लॉकडाउन की नीति अपनाई है। रिपोर्ट कहती है कि लैटिन अमेरिका में गैरसंगठित क्षेत्र पर 89 फीसदी, अरब देशों में 83 फीसदी अफ्रीकी और एशियाई देशों में 73 फीसदी और यूरोप और सेंट्रल एशिया में 64 फीसदी असर पड़ा है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि देशों को बहुस्तरीय रणनीति अपनानी होगी जिसमें स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक प्रभाव को कम करने के उपाय भी होने चाहिए। आईएलओ ने सुझाव दिए हैं कि सरकारों को गैरसंगठित क्षेत्र के कामगारों और मजदूरों को वायरस से बचाने के बड़े पैमाने पर उपाय करने होंगे, इन्हें स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करानी होंगी, पैसा और भोजन की व्यवस्था करनी होगी।
साभार :नवजीवन