महाराष्ट्र और मुंबई में हमेशा भाजपा-शिवसेना गठबंधन का सिरदर्द बनते रहे मुस्लिम मतदाता इस बार न सिर्फ खामोश हैं, बल्कि उनके बीच यह जबरदस्त मंथन चल रहा है कि क्या उन्हें वक्त के साथ बदलना नहीं चाहिए। मुसलमानों की इस सोच को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पांच साल की सरकार के कामकाज और खुद फडणवीस के नरम रुख ने भी हवा दी है।
दूसरी तरफ कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं के रवैये और मुसलमानों के भाजपा-शिवसेना विरोध की मजबूरी को इस वोट बैंक पर अपनी बपौती मान लेने की सोच ने भी उन मुस्लिम नेताओं का काम आसान किया है जिन्हें भाजपा-शिवसेना के प्रति नरम रुख रखने वाला माना जाता है। मुसलमानों की खामोशी और कुछ हिस्सों के बदलते रुख से कांग्रेस-एनसीपी नेता पसोपेश में हैं।
यूं तो भाजपा-शिवसेना गठबंधन के चुनावी प्रचार का मुख्य आधार हिंदुत्व ही है, लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुसलमानों को भी रिझाने की कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस काम में उनकी मदद कर रहे हैं गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुस्लिम राजनीति के पुराने सिपहसालार जफर सरेशवाला।
हाल ही में मुंबई के मुस्लिम सामाजिक नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल लेकर सरेशवाला ने फडणवीस से मुलाकात की और उनसे मुस्लिम समाज से जुड़े तमाम तमाम मुद्दों को हल करने का अनुरोध किया। इसमें सबसे प्रमुख है जोगेश्वरी में इस्माइल फारुख कालेज का मुद्दा।
सरेशवाला बताते हैं कि 1910 में एक मुस्लिम कारोबारी इस्माइल फारुख ने मुसलमानों के लिए उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थान बनाने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश शासन को छह लाख रुपए का अनुदान दिया था। 1930-32 में मुंबई के जोगेश्वरी में शासन ने इसके लिए 80 एकड़ जमीन खरीदी थी।
लेकिन इसके बाद स्वतंत्रता आंदोलन तेज होने और अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद यह काम अधूरा रह गया। बाद में राज्य सरकार ने उस जमीन का उपयोग अपने लिए शुरु कर दिया। इसे लेकर मुंबई के मुस्लिम समुदाय के प्रबुद्ध वर्ग में खासा असंतोष है और लोग चाहते हैं कि यहां एक उच्च शिक्षण संस्थान बने।