जर्मनी का मुस्लिम समुदाय मस्जिदों को बम से उड़ाने जैसी धमकियों से परेशान है. अब देश के मुस्लिम संगठन सरकार से मस्जिदों को सुरक्षा मुहैया कराने की अपील कर रहे हैं. लेकिन जर्मन सरकार इस पक्ष में नहीं दिखती.
जर्मनी में मस्जिदों को बम से उड़ाने जैसी धमकियों ने मुसलमान समुदाय को परेशान कर दिया है. जुलाई 2019 में जर्मनी के इजरलोन, म्यूनिख और कोलोन की मुख्य मुस्जिदों को बम से उड़ाने की धमकियां मिली थीं. हाल में कुछ इसी तरह की धमकियां डुइसबुर्ग, मनहाइम और मांइस शहर की मस्जिदों को भी मिली हैं.
Threats against mosques in Germany – the state is required to protect Muslims Politics and Economy – https://t.co/vGkfHVaoDv
— NEWS ONE (@NEWSONE_NEWS_) July 24, 2019
पेशे से वकील और जर्मनी की संस्था कॉर्डिनेशन काउंसिल ऑफ मुस्लिम की प्रवक्ता नुरहत सोयकान इन धमकियों के बारे में कहती हैं, “अब बस, बहुत हो चुका है”.
इस संस्था को 2007 में गठित किया गया था. इसमें जर्मनी के चार प्रमुख इस्लामिक संगठन, पहला द सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम इन जर्मनी, दूसरा द टर्किश इस्लामिक यूनियन फॉर रिलीजियस अफेयर (डीआईटीआईबी), तीसरा इस्लामिक काउंसिल फॉर द फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी और द एसोसिएशन ऑफ इस्लामिक कल्चरल सेंटर्स शामिल हैं.
सोयकान ने जर्मन प्रशासन से अपनी अपील में कहा है, “मुसलमान बेहद ही परेशान हैं. ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे कदम उठाए जिससे लोगों में दोबारा विश्वास पैदा हो.” उन्होंने कहा कि जर्मन प्रशासन का फर्ज यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोग बिना किसी डर और खतरे के अपने धर्म का पालन कर सकें.
जर्मनी में सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम के चेयरमैन एमान मजीक ने भी इस बात पर अपनी सहमति जताई है. उन्होंने कहा कि वे भी मुस्लिम समुदाय पर हिंसा और ऐसी धमकियों को लेकर चिंतित हैं.
उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, “इस्लामोफोबिया और मुस्लिमफोबिया तेजी से बढ़ रहा है. हर हफ्ते मस्जिदों पर किसी ना किसी तरह के हमले किए जा रहे हैं.” मजीक यह भी मानते हैं कि आम लोगों पर भी हमले बढ़ रहे हैं.
उन्होंने कहा, “साल 2017 में इस्लाम के डर के चलते मुस्लिमों और मस्जिदों पर सबसे पहले हमले हुए. उन्होंने कहा कि अब हमले काफी हिंसात्मक हो गए हैं लेकिन कई मामलों में पीड़ित व्यक्ति इसकी शिकायत नहीं करता है.
मजीद के मुताबिक लोगों में जर्मनी की न्याय व्यवस्था की कम जानकारी और जर्मन पुलिस और न्यायपालिका में प्रशिक्षण की कमी के चलते कई मामले नजर में ही नहीं आ पाते. उनके अनुसार यह समस्या काफी जटिल है.
साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी