बीजिंग। चीन के सरकारी मीडिया ने आज के पी ओली की ‘1990 के दशक से नेपाल के संभवत सबसे महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री ’ के रूप में सराहना की जिन्होंने सभी ओर से स्थल से घिरे देश की भारत पर पूर्ण निर्भरता करीब करीब खत्म कर दी।
ग्लोबल टाईम्स के एक आलेख में कहा गया है, उन्होंने भारत पर अपने देश की पूर्ण निर्भरता करीब करीब तोड़ दी जो 1956 से ही चल रही थी। तब नेपाल एक आधुनिक राज्य बना था। उसने हाल ही में इस्तीफा देने वाले ओली को ‘1990 के दशक से नेपाल का संभवत सबसे महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री’ बताया। उसने लिखा, उन्होंने भारत के इस विश्वास को कि नाकेबंदी नेपाल को आत्मसमर्पण करा सकता है, हवा में उड़ा दिया। ग्लोबल टाईम्स का इशारा भारतीय मूल के मधेसियों द्वारा भारत के साथ लगते नेपाल के व्यापारिक मार्गों की महीने भर की गई नाकेबंदी की ओर था। उसने कहा कि एक अन्य उल्लेखनीय उपलब्धि यह है कि नेपाल चीन और रूस की अगुवाई वाले शंघाई सहयोग संगठन का वार्ता पक्षकार बन गया जिससे उसे पूर्व एशिया के मामलों में शामिल होने में मदद मिलेगी।
उसने लिखा है, इसने भारत को निराश किया है क्योंकि यह इस परंपरा को तोड़ता है कि नेपाल को दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ दक्षेस जैसे भारत के अगुवाई वाले संगठनों में ही जुडऩा चाहिए।
आलेख में अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे प्रचंड के संबंध में यह लिखा है, एक बार प्रचंड जब सत्ता संभाल लेते हैं तब वह ओली की चीन समर्थक प्रवृति में बदलाव करेंगे और भारत के हितों का ध्यान रखेेंगे क्योंकि भारत नेपाल पर अपनी पकड़ ढील होने को लेकर चिंतित है। उसने लिखा है कि अपनी पार्टी के अंदर ही गुटों में संतुलन कायम करने की कोशिश में प्रचंड ने चीन और भारत से समान दूरी बनाए रखने का सिद्धांत तैयार किया है।