काठमांडू।नेपाल में नो-कॉन्फिडेंस वोट से पहले ही पीएम केपी ओली के इस्तीफे से वहीं राजनीतिक संकट गहरा गया है। ओली पिछले साल अक्टूबर में पीएम बने थे। कुछ दिन पहले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल और नेपाल कांग्रेस ने सरकार से अपना सपोर्ट वापस लेने का एलान किया था। इसके बाद से ओली सरकार राजनीतिक संकट का सामना कर रही थी।
इस्तीफा देने के बाद ओली ने कहा कि मेरे खिलाफ साजिश की गयी है। ये साजिश ”नेपाली कांग्रेस और माओवादी नेताओं ने सरकार के खिलाफ साजिश की। सरकार ने भारत और चीन के साथ रिश्ते मजबूत किए हैं। अच्छे काम की सजा मिली।” माओवादी नेताओं ने ओली सरकार पर पिछले समझौतों को लागू न करने का आरोप लगाया था। सीपीएन माओवादी पार्टी के प्रेसिडेंट प्रचण्ड ने सरकार से अलग होने की बात कही थी।
प्रचंड ने संसद में कहा था, “प्रधानमंत्री घमंडी और सेल्फिश हो गए हैं और किसी की नहीं सुन रहे। अब हम उनका साथ नहीं दे सकते।” गौरतलब है कि 64 साल के प्रचंड ओली के इस्तीफे के बाद पीएम पद के मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनियर नेता ने एलायंस तोड़ने पर कहा कि सरकार का घमंड तोड़ने के लिए यहीं एक चारा है।” इसके अलावा मधेसी जनाधिकार फोरम नेपाल ने भी सरकार से अपना सपोर्ट वापस ले लिया है।
इसके पहले माओवादी नेता ने आरोप लगाया था कि ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) वादों पर खरी नहीं उतरी। ओली सरकार पहले तय हुए 9 समझौते और मई में सरकार का मुखिया बदलने के फैसले को लागू करने से पीछे हट गई। महीनेभर पहले भी प्रचंड ने ओली सरकार से सपोर्ट वापस लेने का एलान किया था, लेकिन 24 घंटे के भीतर ही वो फैसले से पलट गए थे। नेपाल में संसद के 595 मेंबर हैं।
बीते सितंबर में नया संविधान लागू होने के बाद से ही नेपाल संकट से जूझ रहा है। मधेसियों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। लंबे समय तक राजनीतिक संकट रहने से नेपाल अपराधियों और आतंकवादियों अड्डा बन सकता है। पड़ोसी देश चीन और भारत ने चिंता जताई है।