नई दिल्ली। ई फार्मेसी यानी दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने पर चिकित्सकों पर कामकाज का बोझ बढ़ सकता है। उन्हें चिकित्सकीय परामर्श को ऑनलाइन अपलोड करने का फरमान सुनाया जा सकता है। इसके बाद उन्हें दवा का पर्चा लिखने के साथ ही ऑनलाइन भी डालना होगा, ताकि मरीज के ई फार्मेसी से खरीद करने पर कोई गलती नहीं हो। e pharmacy
सरकार ऐसी वेवसाइटों की व्यवसायिक जिम्मेदारी तय से जुड़ी नीति एवं निर्देश जारी करने की तैयारी में है। इसमें ई फार्मेसी के लिए चिकित्सक के परामर्श की सही परख के लिए योग्य फार्मेसिस्ट रखना, मरीज की गोपनीयता को बरकरार रखना और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशा निर्देशों का पालन करना शामिल होगा।
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने औद्योगिक नीति एवं संवद्र्धन विभाग (डीआईपीपी) को ई फार्मेसी को जिम्मेदार बनाने के लिए सात सूत्रीय नियम सुझाए हैं।
इसमें चिकित्सकों के लिए यह प्रस्ताव है कि उन्हें अपना परामर्श ऑनलाइन डालना होगा। माना जा रहा है कि यह मरीज की मांग पर निर्भर करेगा। यह काम चिकित्सकों को सिर्फ इसलिए करना होगा। ताकि अमुक मरीज ई फार्मेसी से दवा खरीद सके। जाहिर है कि इससे चिकित्सकों पर काम का बोझ बढ़ेगा।
सात सूत्रीय नियम
डीआईपीपी के सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय ने कुल सात सूत्रीय नियम सुझाए हैं। उनमें ऑनलाइन दवा बेचने वाले को पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। ई फार्मेसी सिर्फ सूचीबद्ध और पंजीकृत केमिस्ट के माध्यम से दवा बेचेगी। ई विक्रेता को योग्य फार्मासिस्ट रखने के साथ उसकी जानकारी पोर्टल पर डालनी होगी। साथ ही वितरण में जोखिम की जिम्मेदारी लेनी होगी और डब्ल्यूएचओ के दिशा निर्देशों के तहत व्यवसायिक गतिविधि के साथ मरीज की गोपनीयता बरकरार रखनी होगी।
केमिस्ट संगठनों द्वारा देश में चल रहे ई फार्मेसी की जोरदार खिलाफत की जा रही है। उनके विरोध के चलते सरकार दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के लिए नीति ला रही है। इससे सीधे तौर पर दवा खरीदने वाले ग्राहकों को फायदा होगा, क्योंकि ई फार्मेसी कंपनियां दवाओं की खरीद पर ग्राहकों को 10 से 30 प्रतिशत तक छूट मुहैया करा रही हैं। लेकिन फिलहाल यह सुविधा मुंबई, दिल्ली, बंगलुरू समेत कुछ बड़े शहरों में ही उपलब्ध है। विरोध के चलते ई फार्मेसी छोटे शहरों तक नहीं बढ़ पाई। गौरतलब है कि ई फार्मेसी को कानूनी तौर पर हरी झंडी मिलने पर वे हरेक शहर में ग्राहकों की सुविधा और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएंगे। हालांकि नीति आने पर उन पर कई खर्च का बोझ बढ़ जाएगा।
चिकित्सकों के लिए यह करना मुश्किल
भारतीय चिकित्सा संघ (आईएम) के पूर्व सचिव डॉ.नरेंद्र सैनी के मुताबिक चिकित्सकीय परामर्श को ऑनलाइन अपलोड करना सभी डॉक्टरों के लिए संभव नहीं है। अधिकतर चिकित्सक छोटे से क्लीनिक में बड़ी तादाद में मरीजों को देखते हैं। देशभर में चिकित्सकों की भारी कमी हैं और उनकी तुलना में मरीज बहुत हैं। ऐसे में अगर सरकार इस प्रस्ताव को चिकित्सकों पर लागू करती है तो वह काम का बोझ बढ़ाने के सिवा कुछ नहीं होगा। e pharmacy