मैं स्कूल के लिए तैयार हो रहा था। बच्चे स्कूल के लिए निकल चुके थे लेकिन उस दिन पता नहीं मेरा मन क्यों स्कूल जाने का नहीं कर रहा था। रोज की तरह सभी अपने-अपने काम में व्यस्त थे। तभी अचानक वो हुआ जिसने हमारी जिंदगी, विरासत और नस्लें उजाड़ दीं।’ ये शब्द हैं जापान के जुंको मोरीमोटो के, जो 6 अगस्त 1945 की सुबह 8.15 बजे स्कूल के लिए निकलने वाले थे।
तभी एक तेज आवाज हुई, आंखों के सामने सिर्फ तेज रोशनी थी, रोशनी भी ऐसी मानो एक्स-रे की तरह हाथों के आर-पार दिख रहा हो और फिर सिर्फ अंधकार। सदा के लिए। चीखें भी हल्की थीं, क्योंकि सब मलबे के नीचे था।
ये 73 साल पहले आज जैसी वही सुबह थी जब विश्व युद्ध-2 के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर पहला एटम बम गिराया था। इनोला गे B-29 बॉम्बर विमान से एक ऐसे हमले को अंजाम दिया गया जिसको ना दुनिया ने देखा था और ना कल्पना की थी। अमेरिका के सैनिकों को पर्ल हार्बर में जापानी सेना ने जो नुकसान पहुंचाया था उसके जवाब में अमेरिका विश्व युद्ध में कूदा और जापान को सरेंडर करने के लिए कहा, जापान को भी शायद अंदाजा नहीं था कि उसके ‘ना’ कहने पर इतिहास का सबसे खतरनाक मंजर दुनिया के सामने होगा।
उस समय स्कूल में पढ़ाने वाले जुंको तो उन किस्मत वालों में थे जो उस दिन बच गए लेकिन स्कूल पहुंच चुके बाकी बच्चों को नहीं पता था कि वो उनका अंतिम दिन था। तीन लाख की आबादी वाले हिरोशिमा शहर पर बम के गिरते ही 80 हजार लोगों की तुरंत मौत हो गई, 35000 घायल हुए जबकि रेडिएशन और हमले के घावों ने साल खत्म होते-होते 60 हजार और लोगों की जान ले ली। ये तो बस अमेरिका का पहला हमला था क्योंकि तीन दिन बाद नागासाकी शहर पर एक और परमाणु बम गिराकर अमेरिका ने जापान को घुटनों पर ला दिया, विश्व युद्ध का तो अंत हुआ लेकिन दो शहर सदा के लिए टूट गए।
हमलों से जूझते हुए बाद के हालातों से निपटकर पटरी पर लौटते हुए आपने बहुत शहरों को देखा होगा..लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी इस कड़ी में मिसाल बन गए। हिरोशिमा पर जब 6 अगस्त 1945 को पहला परमाणु बम गिराया गया तो शहर जमीदोज हो गया था। एक ऐसा कब्रिस्तान जहां पर रोते-बिलखते लोग अपने परिजनों के शरीर के बचे हिस्से खोज रहे थे..
आज वही शहर अपने जज्बे, हिम्मत और हौसले के दम पर वापस पटरी पर लौट चुका है, ऐसी ही कुछ पहले व आज की तस्वीरें हैं जो आपको भी इस शहर को सलाम करने के लिए मजबूर कर देंगी..
आप ऊपर जो हमले के बाद की तस्वीर देख रहे हैं, उस इमारत को जापान ने मेमोरियल के रूप में वैसा ही बरकरार रखा और आज हर साल 6 अगस्त को लोग यहां पहुंचकर मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं। ये अब कुछ ऐसा दिखता है..
नीचे आप जो तस्वीर देख रहे हैं वो 2016 की है जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने खुद हिरोशिमा जाने का फैसला किया था और वो हिरोशिमा में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मिले थे व हिरोशिमा मेमोरियल पर हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी थी।
जिस देश ने इस शहर का सब कुछ छीना था, उसी देश का राष्ट्रपति यहां पर आ रहा था इसलिए लोग काफी उम्मीदें लगाए बैठे थे। बहुत लोग उम्मीद कर रहे थे कि शायद ओबामा अपने देश की ओर से आधिकारिक रूप से माफी मांगेंगे लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। ओबामा आए, उन्होंने श्रद्धांजलि दी और भविष्य में कोई भी देश ऐसे घातक हमले के बारे में ना सोचे, इसकी नसीहत देकर चले गए।