ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करने वाले भगवान बिरसा मुंडा का आज 125वां शहादत दिवस है। जल, जंगल, जमीन, आदिवासी अस्मिता और देश की आजादी के लिए भगवान बिरसा मुंडा का योगदान अतुलनीय और कभी न भुलाया जा सकने वाला है।
भगवान बिरसा मुंडा ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ने वाले बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था।
स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बिरसा मुंडा को उनके बलिदान दिवस पर याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पोस्ट में कहा, “स्वतंत्रता संग्राम के महानायक भगवान बिरसा मुंडा जी को उनके बलिदान दिवस पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। आदिवासी भाई-बहनों के कल्याण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका त्याग और समर्पण देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।”
उल्लेखनीय है कि भगवान बिरसा मुंडा एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को हुआ था और और उनकी मृत्यु 9 जून 1900 को हुई थी।
9 जून यानी बिरसा मुंडा की 125वीं शहादत दिवस के मौके पर डोंबारी बुरू का ज़िक्र ज़रूरी है। डोंबारी बुरू अंग्रेजों के दुर्दात करतूत का गवाह है। इस घटना की तुलना जालियांवाला कांड से की जाती है।
9 जनवरी 1899 को अंग्रेजों ने गोलियों की बौछार कर सैकड़ों निहत्थे आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना में भगवान बिरसा मुंडा बच कर निकल गए थे।
डोंबारी की पहाड़ियों में रहकर बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाया करते थे। यहाँ रहले हुए उन्होंने आदिवासियों को एकजुट किया और यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान की थी।
बिरसा मुंडा को 2 फरवरी 1900 को दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया था और रांची जेल भेज दिया गया था। यहाँ 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मौत हो गयी थी। रांची के कोकर डिस्टीलरी के पास नदी किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया था, जहां आज भी उनकी समाधि है।
भगवान बिरसा मुंडा के बलिदान दिवस के अवसर पर उनकी जन्मस्थली उलिहातू और कर्मस्थली डोम्बारी बुरु में बड़ी संख्या में आदिवासी पहुंचक्र उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।