ओबामा ने व्हाइट हाउस छोड़ने से पहले ट्रंप के साथ मिलकर एक काल्पनिक महामारी के खिलाफ अभ्यास किया था और पूरी रणनीति उनके सुपुर्द की थी. लेकिन ट्रंप ने सत्ता संभालते ही उसे दरकिनार कर दिया और उस विभाग को ही खत्म कर दिया.
कोरोना वायरस के सामने दुनिया का सबसे शक्तिशाली और सबसे धनी देश अमेरिका बेबस नजर आ रहा है. अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाओं में वहां तीसरी दुनिया कहे जाने वाले देशों जैसी लाचारी दिख रही है. दशकों से महामारियों और अन्य विपदाओं के खिलाफ दुनिया का हाथ थामने वाला अमेरिका खुद बैसाखियां ढूंढ रहा है.
अपने-अपने घरों में बंद अमेरिकी जनता हर सुबह इस उम्मीद के साथ जगती है कि महामारियों पर बनी हॉलीवुड की डरावनी फिल्मों की तरह शायद इस वायरस का भी अंत निकट हो. लेकिन हर सुबह और ज्यादा मौतों की खबर ला रही है. दुनिया की वित्तीय राजधानी कहलाने वाले न्यूयॉर्क में लाशों को सामूहिक रूप से दफनाया जा रहा है. अमेरिकी मीडिया राष्ट्रपति ट्रंप पर उंगली उठा रहा है, ट्रंप मीडिया और चीन दोनों को कोस रहे हैं. जानकारों की मानें तो स्थिति को बिगड़ने देने में ट्रंप और उनके प्रशासन की गलती तो है ही, पिछले दो दशकों से चली आ रही अमेरिकी नीतियां भी इसकी जिम्मेदार हैं.
पिछले बीस सालों में हर प्रशासन के सामने विशेषज्ञों, सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी रिपोर्टों और खुफिया अधिकारियों ने कोरोना वायरस जैसी महामारी की तस्वीर पेश की है, उसके खिलाफ तैयार रहने की सलाह दी है. लेकिन हर नए राष्ट्रपति ने पुराने राष्ट्रपति की सलाहों को नजरअंदाज किया है और फिर जब विपदा आई है तब जाकर तैयारियां शुरू हुईं हैं, टास्कफोर्स बने हैं. विपदा के काबू में आने के बाद सब कुछ फिर जस का तस. राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 1998 में जैविक हथियारों से हमलों और इस तरह की महामारियों के खिलाफ तैयारी के लिए स्वास्थ्य उपकरणों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सुरक्षित कपड़ों और मास्क का आपातकालीन भंडार तैयार करने के लिए एक उच्च अधिकारी की नियुक्ति की थी.
अमेरिका में कोरोना विस्फोट की कई वजहें हैं, हालांकि कई जानकार आशंका जता रहे हैं कि सबसे बदतर स्थिति अभी आनी बाकी है. इस वक्त अमेरिका में इस वायरस के सबसे ज्यादा मामले हैं.
राष्ट्रपति बुश ने 2001 में सत्ता संभालते ही उस पद को खत्म कर दिया लेकिन ग्यारह सितंबर के हमले के बाद उनकी नीति भी बदली. अमेरिका जैविक और रासायनिक हथियारों के खतरे के प्रति सचेत हुआ. कुछ ही दिनों में बुश प्रशासन ने सार्स बीमारी का सामना किया और अपने अनुभवों को अगले राष्ट्रपति ओबामा के साथ साझा किया. लेकिन ओबामा ने भी पहले उसे नजरअंदाज ही किया. ये वही ओबामा थे जिन्होंने छह साल पहले एक सेनेटर के रूप में न्यूयॉर्क टाइम्स में लेख लिखकर इस तरह की महामारी के खिलाफ अमेरिका और दुनिया को तैयार रहने की नसीहत दी थी.
राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी आंखें खोलीं एच1एन1स्वाइन फ्लू और फिर इबोला के संकट ने. और उन्होंने इस तरह की महामारियों से जूझने के लिए एक पूरी नीति तैयार की जिसके तहत एक अलग विभाग का भी गठन हुआ. उनके अनुभवों ने एक कारगर नीति की बुनियाद रखी जिसका मकसद न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया को ऐसी विपदा के खिलाफ तैयार रखना था.
ओबामा की टीम ने व्हाइट हाउस छोड़ने से पहले राष्ट्रपति ट्रंप की टीम के साथ मिलकर एक काल्पनिक महामारी के खिलाफ अभ्यास भी किया और एक पूरी रणनीति उनके सुपुर्द की. ट्रंप की टीम ने सत्ता संभालते ही उसे दरकिनार कर दिया और पिछले साल ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन ने ओबामा के बनाए ग्लोबल हेल्थ सेक्योरिटी ऐंड बायोडिफेंस विभाग को ही खत्म कर दिया.