मुंबई: कहावत है कि दो के झगड़े में तीसरे का फायदा होता है, लेकिन मुंबई बीएमसी चुनाव में शिवसेना और बीजेपी ने इसे गलत साबित कर दिया है और इसे गलत साबित करने में उस कांग्रेस का बड़ा हाथ है, जिसे इस झगडे़ का फायदा उठाना चाहिए था. Congress
बीएमसी चुनाव में शिवसेना ने 84 और बीजेपी ने 82 सीटें जीतकर बढ़त बनाई है, जबकि कांग्रेस 31 पर ही सिमट गई, जबकि साल 2012 के चुनाव में कांग्रेस को 51 सीटें मिली थी.
बीएमसी चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार के बाद मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने समझदारी दिखाते हुए बिना देर किए इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस आलाकमान ने तुरंत भाई जगताप को मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष भी बना दिया.
जानकार मानते हैं कि जितनी तेजी कांग्रेस आलाकमान ने संजय निरुपम के इस्तीफे को स्वीकार कर नया अध्यक्ष बनाने में दिखाई, उतनी तेजी चुनाव के पहले अपने पुराने कांग्रेसी नेताओं की शिकायत पर दिखाई होती तो आज मुंबई में कांग्रेस को ये दिन नहीं देखना पड़ता.
इसमें कोई शक नहीं कि शिवसेना से कांग्रेस में आए संजय निरुपम ने खबरों में और सड़क पर कांग्रेस को जिंदा रखा, लेकिन पुराने नेताओं को उतना ही नाराज और नजरअंदाज भी किया.
गुरुदास कामत, नारायण राणे जैसे नेताओं ने खुलकर संजय निरुपम की कार्यशैली की आलोचना की थी. गुरुदास कामत सबकुछ छोड़ घर बैठ गए. उनके करीबी पूर्व विधायक कृष्णा हेगड़े बीजेपी में शामिल हो गए.
लेकिन कांग्रेस आलाकमान के कानों पर जू तक नहीं रेंगी. दिखाने के लिए मीटिंग कर बड़े नेताओं में समझौते की कोशिश भी हुई, लेकिन संजय निरुपम की मनमानी पर कोई भी असर पड़ता नहीं दिखा.
टिकट बंटवारे में उनपर खुलकर भेदभाव का आरोप लगा. संजय निरुपम पर पूर्व मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह और पूर्व मंत्री नसीम खान जैसे मुंबई के पुराने कांग्रेसी दिग्गजों के समर्थकों का टिकट काटने का आरोप लगा. नतीजा ये हुआ कि दोनों ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी. कांग्रेस में खुलकर गुटबाजी होती रही और कांग्रेस आलाकमान चैन की नींद सोता रहा.
अब जब बीएमसी, ठाणे सहित राज्य में 10 जिला परिषद के चुनावों में कांग्रेस की बुरी हार के बाद वरिष्ठ कांग्रेसी और विपक्ष नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने माना है कि कांग्रेस की ये हार आपसी विवादों का नतीजा है. इसलिए आपस में बैठकर चर्चा करने की जरूरत है, लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.