अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरें बहुत तेजी से पिघल रही हैं। दूसरी तरफ वैज्ञानिक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की हर मुमकिन कोशिश में जुटे हैं। इन सबके बावजूद बर्फ की चादरों का पिघलना खतरनाक संकेत दे रहा है।
एक नई रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें अपने ग्लेशियरों की सुरक्षा के लिए जियोइंजीनियरिंग परियोजनाओं के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है, अन्यथा समुद्र के स्तर में विनाशकारी वृद्धि के लिए तैयार रहना होगा।
पिघलते ग्लेशियरों के कारण 2100 तक समुद्र के स्तर में एक मीटर तक की वृद्धि संभव है, जो निचले इलाकों के शहरों के विनाश और लाखों लोगों के विस्थापन का कारण बनेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरें तेजी से पिघल रही हैं और अगर तमाम कोशिशें कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में कामयाब होती हैं, फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि यह सब करने से बर्फ की चादरों को ढहने से रोका जा सकेगा या नहीं।
वैज्ञानिकों को डर है कि अगर इस संबंध में कोई उपाय नहीं किया गया तो 2100 तक समुद्र के स्तर में एक मीटर तक की वृद्धि संभव है, जो निचले इलाकों के शहरों के विनाश और लाखों लोगों के विस्थापन का कारण बनेगी।
इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने ग्लेशियरों की जड़ों पर पर्दे लगाकर (Fixing curtains) या ग्लेशियरों में छेद करके बर्फ की चादरों के झरनों में निकासी करने का विचार प्रस्तुत किया है। ऐसा करके उनके पिघलने की रफ़्तार को धीमा किया जा सकता है।
रिपोर्ट में अब ग्लेशियरों की जियोइंजीनियरिंग पर गंभीर शोध का भी आह्वान किया गया है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन को कम करने को प्राथमिकता दी गई है, ताकि इसके जोखिमों और लाभों का आकलन किया जा सके और बाद में जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों से बचा जा सके।