नई दिल्ली: कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बुधवार (03 जनवरी) को तीन तलाक बिल राज्यसभा में पेश किया। यह विधेयक लोकसभा में पहले ही पास हो चुका है। राज्यसभा में बिल पेश होने के साथ ही विपक्षी पार्टियों ने हंगामा शुरू कर दिया। बता दें, कि राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारण इसे पास कराना मोदी सरकार के लिए चुनौती हो सकती है। कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस ने इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग की है।
इससे पहले, मंगलवार शाम को राज्यसभा के कार्य मंत्रणा समिति की इस बारे में बैठक हुई, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। गौरतलब है, कि संसद का शीतकालीन सत्र काफी छोटा है। धीरे-धीरे यह अपने अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ रहा है। मोदी सरकार की यह कोशिश है कि वह सत्र में ही इस सबसे महत्वपूर्ण बिल को पास करा ले।
बहस के दौरान राज्य सभा में बोलते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सवाल किया जब लोकसभा में आपने समर्थन दिया तो अब राज्य सभा में विरोध क्यों कर रहे हैं? कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए जेटली ने कई सवाल दागे। जेटली ने आगे कहा, विपक्ष ने पहले नोटिस क्यों नहीं दिया? उन्होंने कहा, कि सुप्रीम कोर्ट ने भी तीन तलाक को असंवैधानिक बताया है।
इस बीच रविशंकर प्रसाद ने पूछा, कि क्या कांग्रेस महिलाओं के खिलाफ है? उनका यह बयान कांग्रेस की तरफ से हो रहे विरोध के बाद आया था। इसके बाद कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा, कि हम महिलाओं का सम्मान करते हैं। लेकिन हम चाहते हैं कि बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाए।
इस बिल पर राज्यसभा में कांग्रेस का रुख क्या होता है, सबकी नजर इसी पर होगी। अगर केंद्र सरकार राज्यसभा में भी इस विधेयक को पास करा लेती है, तो फिर इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद यह बिल कानून बन जाएगा।
लोकसभा से पास होने के बाद अब राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा होगी। गौरतलब है, कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली सरकार का राज्यसभा में बहुमत नहीं है। तीन तलाक के खिलाफ इस बिल में सजा के प्रावधान को लेकर विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। वो संशोधन की मांग पर अड़े हैं।
विपक्षी पार्टियों में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके सहित कई अन्य दल ऐसे हैं, जो सीधे-सीधे इस बिल का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन चाहते हैं कि इस पर और विचार-विमर्श के लिए इसे राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए। इन पार्टियों का तर्क है कि इस बिल में तीन तलाक की सूरत में पति को तीन साल के लिए जेल भेजने का प्रावधान गैर जरूरी है। इससे मामला सुलझने के बजाय और ज्यादा उलझ जाएगा। साथ ही उन नेताओं का कहना है कि सिविल मामले को क्रिमिनल मामला बनाना ठीक नहीं होगा।
वहीं, सरकार का कहना है कि यह छोटा सा कानून है, जो सुप्रीम कोर्ट के कहने पर बनाया जा रहा है। इसमें हर स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं।