सुप्रीम कोर्ट ने किसी महिला के लिए ‘नाजायज पत्नी या वफादार रखैल’ जैसे शब्दों के प्रयोग को स्त्री विरोधी बताया है। साथ ही कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ बॉम्बे हाईकोर्ट के अपने आदेश में ऐसे शब्दों के प्रयोग को गलत बताया है।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत अमान्य विवाह में पत्नी भरण-पोषण मांगने की अधिकारी हैं। यह बात जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कही। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से 2004 के फैसले में ‘नाजायज पत्नी’ या ‘वफादार रखैल’ शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई है।
पीठ ने एक मामले में विचार के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल कोर्ट बेंच द्वारा भाऊसाहेब बनाम लीलाबाई (2004) मामले में ‘नाजायज पत्नी’ शब्द गढ़े जाने की बात कही। कोर्ट का कहना है कि उक्त मामले में विवाह अमान्य घोषित किए जाने के पश्चात पत्नी को नाजायज पत्नी कहना अनुचित है। अदालत ने इसे संबंधित महिला की गरिमा प्रभावित करने वाला बताया और कहा कि दुर्भाग्य से बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस शब्द का इस्तेमाल किया।
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में किसी भी महिला के लिए स्त्री-द्वेषपूर्ण भाषा के प्रयोग को संविधान के मूल्यों और आदर्शों के खिलाफ बताया गया है। पीठ ने आगे कहा की यह ध्यान देने योग्य है कि हाईकोर्ट ने अमान्य विवाह के पतियों के मामले में ऐसे विशेषणों का प्रयोग नहीं किया है।
अपनी बात में शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि यह बात चौंकाने वाली है कि हाईकोर्ट ने ऐसी पत्नी को ‘वफादार रखैल’ बताया है। पीठ ने कहा कि यह ध्यान देने योग्य है कि हाईकोर्ट ने अमान्य विवाह के पतियों के मामले में ऐसे विशेषणों का प्रयोग नहीं किया है।
बेंच का कहना था कि संविधान की धारा 21 प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने का मौलिक अधिकार देती है। किसी महिला के लिए इन शब्दों का प्रयोग संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इन शब्दों का इस्तेमाल करके किसी महिला का वर्णन करना हमारे संविधान के मूल्यों और आदर्शों के खिलाफ है।
आगे पीठ ने कहा कि कोई भी व्यक्ति ऐसी महिला का उल्लेख करते समय ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं कर सकता है जो अमान्य विवाह में पक्षकार है। दुर्भाग्य से, हम पाते हैं कि हाईकोर्ट की फुल बेंच के निर्णय में ऐसी आपत्तिजनक भाषा का उपयोग किया गया है। कोर्ट ने इसे स्त्री-द्वेषपूर्ण बताया।
बेंच द्वारा स्थायी गुजारा भत्ते की राहत के हवाले से सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि जिस दंपति का विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत अमान्य घोषित किया गया है, वह अधिनियम की धारा 25 के तहत दूसरे पति से स्थायी गुजारा भत्ता या अंतरिम भरण-पोषण मांगने का हकदार है।
आगे पीठ का कहना था कि धारा 25 के तहत राहत प्रदान करना हमेशा विवेक पर निर्भर करता है। भले ही न्यायालय प्रथम दृष्टया इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि पक्षकारों के बीच विवाह शून्य है लेकिन 1955 के अधिनियम के तहत कार्यवाही के अंतिम निपटान तक न्यायालय को भरण-पोषण देने से रोका नहीं जा सकता है, बशर्ते धारा 24 की शर्तें पूरी हों।