उच्चतम न्यायालय ने 14 राफेल लड़ाकू विमान के सौदे को बरकरार रखते हुए अपने 14 दिसंबर, 2018 को दिए फैसले के खिलाफ दाखिल समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया। केंद्र सरकार को राहत देते हुए मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि इसकी अलग से जांच करने की जरूरत नहीं है। अदालत ने केंद्र की दलीलों को तर्कसंगत और पर्याप्त बताते हुए माना कि केस के मेरिट को देखते हुए इसमें दोबारा जांच के आदेश देने की जरूरत नहीं है।
न्यायालय ने कहा, ‘हमें नहीं लगता कि राफेल विमान सौदा मामले में प्राथमिकी दर्ज करने या बेवजह जांच का आदेश देने की जरूरत है।’ अदालत ने 14 दिसंबर 2018 को राफेल खरीद प्रक्रिया और सरकार द्वारा इंडियन ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में भारतीय कंपनी को फेवर किए जाने के आरोपों की जांच करने का अनुरोध करने वाले सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि फैसला लेने की प्रक्रिया में कहीं भी शक करने की गुंजाइश नहीं है।
Supreme Court dismisses Rafale review petitions against its December 14, 2018 judgement upholding the 36 Rafale jets' deal. pic.twitter.com/DCcgp4yFiH
— ANI (@ANI) November 14, 2019
बता दें कि पिछले साल अदालत ने 59,000 करोड़ के राफेल सौदे में हुई कथित अनियमितताओं की अदालत की निगरानी में जांच वाली मांग को खारिज कर दिया था। राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2018 को दिए अपने फैसले में भारत की केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी थी। हालांकि इस फैसले की समीक्षा के लिए अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं और 10 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
फ्रांस से 36 राफेल फाइटर जेट के भारत के सौदे को चुनौती देने वाली जिन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, उनमें पूर्व मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की याचिकाएं शामिल थीं। सभी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से उसके पिछले साल के फैसले की समीक्षा करने की अपील की थी।