सीनियर साथी द्वारा जूनियर के साथ व्यहवार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया है। ऑफिस में सीनियर साथी द्वारा किसी जूनियर को काम की वजह से डांटने या शुष्क अंदाज में बात करने को अदालत ने अपराध की श्रेणी से बाहर रखा है।
अदालत का कहना है कि वर्क प्लेस पर सीनियर साथी को डांटने को अपराध नहीं माना जाएगा और इस पर एक्शन नहीं लिया जाएगा।
यह फैसला कोर्ट ने साल 2022 के एक केस की सुनवाई के बाद दिया। कोर्ट का कहना है कि ऑफिस में किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा डांट-फटकार देना या किसी तरह की वॉर्निंग मिलने को ‘जानबूझकर अपमान’ की कैटेगरी में नहीं माना जाएगा और इस पर आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती है।
फैसले में अदालत ने खुलासा करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में लोगों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति देने से और ऐसे केस पर एक्शन लेने से काफी खराब नतीजे सामने आ सकते हैं। आगे अदालत का कहना था कि ऐसे में ऑफिस के वरिष्ठ स्टाफ जूनियर्स को डांटने से बचेंगे और ऑफिस में अनुशासन में कमी आएगी।
केस की सुनवाई में जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि ऑफिस में किसी सिनीयर की सिर्फ गुस्से में कही गई बातें, रूखा या रूड व्यवहार या असभ्य भाषा आईपीसी की धारा 504 के तहत ‘जानबूझकर अपमान’ की कैटेगरी में नहीं आते हैं।
बताते चलें कि आईपीसी की धारा 504 के तहत अगर कोई शख्स शांति भंग करने के इरादे से आपका जानबूझकर अपमान करता है तो ऐसे मामले में उसको 2 साल तक की सजा दी जा सकती है। याद दिला दें कि आईपीसी की धारा 504 को जुलाई 2024 से प्रभावी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत धारा 352 से बदल दिया गया है।
उक्त मामला साल 2022 का है, जिसमे कोर्ट के सामने आने वाले केस में राष्ट्रीय बौद्धिक विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण संस्थान के कार्यवाहक डायरेक्टर के खिलाफ एक असिस्टेंट प्रोफेसर द्वारा शिकायत की गई थी।
महिला असिस्टेंट प्रोफेसर ने आरोप में कहा था कि डायरेक्टर ने उनको बाकी सभी कर्मचारियों के सामने डांटा था। ऐसा उनके खिलाफ वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत करने की वजह से हुआ। मामले में यह भी आरोप लगाया गया था कि डायरेक्टर ने संस्थान में कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए पर्याप्त पीपीई किट उपलब्ध नहीं करवाई, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ गया था।
सुनवाई के बाद कोर्ट का कहना था कि आरोपपत्र और उसमें मौजूद दस्तावेजों को देखने से आरोप पूरी तरह से काल्पनिक लगते हैं। जो किसी भी तरह की कल्पना की वजह से उन्हें आईपीसी की धारा 269 (लापरवाही से खतरनाक बीमारी फैलने का खतरा) और 270 (जानलेवा बीमारी फैलाने का दुर्भावनापूर्ण काम) के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए काफी नहीं है।
शीर्ष अदालत का कहना था कि वरिष्ठ की चेतावनी को आईपीसी की धारा 504 के तहत जानबूझकर अपमान’ नहीं माना जा सकता है। पिछले दिनों सुनाए गए फैसले में कहा गया, “जो व्यक्ति ऑफिस में सीनियर पोस्ट में है और कई चीजों को संभाल रहा है उसके लिए जरूरी है कि उसके जूनियर पूरी ईमानदारी और जैसा वो चाहते हैं वैसा काम करें।