बीते माह केरल के वायनाड जिले में होने वाली तबाही के पीछे भारी बारिश और घातक भूस्खलन की वजह सभी जानते हैं। इस आपदा में 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई हज़ारों ज़ख़्मी हुए और पूरा इलाक़ा उजाड़ गया।
मेप्पाडी के पास पहाड़ी इलाकों में होने वाले इस भूस्खलन को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। इनके शोध के अनुसार, केरल के पारिस्थितिकी रूप से नाजुक वायनाड जिले में घातक भूस्खलन का कारण भारी बारिश था। अध्ययन कहता है कि इस बारिश ने जलवायु परिवर्तन के कारण दस प्रतिशत ज्यादा खतरनाक रूप ले लिया।
परिस्थितियों का जायज़ा लेते हुए भारत सहित अमरीका, स्वीडन और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि गर्म होती जलवायु के साथ इस तरह की घटनाएं आम होने लगेंगी।
गर्म वातावरण अधिक नमी सोख्ता है, जो भारी बारिश का कारण बनता है। वैश्विक तापमान में प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी से वायुमंडल में नमी धारण करने की क्षमता लगभग सात प्रतिशत बढ़ जाती है।
ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान बढ़ा रही है। इसमें पहले ही 1.3 डिग्री सेल्सियस का इज़ाफ़ा हो चुका है। इस वृद्धि को वैज्ञानिक खराब मौसम से जुड़ी आपदाओं के लिए जिम्मेदार बताते हैं।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन यानी डब्ल्यूडब्ल्यूए ग्रुप के वैज्ञानिकों ने मानवजनित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए, उच्च-रिजॉल्यूशन जलवायु मॉडल का विश्लेषण किया।
यह मॉडल जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की तीव्रता में दस फीसद इज़ाफ़े के संकेत दे रहे हैं। साथ ही विश्लेषण यह संकेत भी देते हैं कि 1850-1900 के औसत से मुक़ाबला करने पर वैज्ञानिक पाते हैं कि वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर, इसमें चार प्रतिशत की और वृद्धि होने के संकेत मिले हैं।
क्योंकि अध्ययन के लिए छोटे और पहाड़ी क्षेत्र चुने गए थे, ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि मॉडल के परिणामों में अनिश्चितता का उच्च स्तर है।
वैज्ञानिक इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि एक दिन की भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि, भारत सहित गर्म होते विश्व में अत्यधिक बारिश के बारे में बढ़ते वैज्ञानिक प्रमाणों से मेल खाती है।
वैज्ञानिक इस आधार पर मानते हैं कि गर्म वातावरण अधिक नमी सोखता है, जो भारी बारिश का कारण बनता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि वैश्विक तापमान में प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी के कारण वायुमंडल में नमी धारण करने की क्षमता लगभग सात प्रतिशत बढ़ जाती है।
ग्रीनहाउस गैसें जिनमे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी का वैश्विक सतह का तापमान पहले ही लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। तापमान की इस वृद्धि को वैज्ञानिक दुनिया भर में सूखे, गर्मी की लहरों और बाढ़ जैसी खराब मौसम की घटनाओं के लिए जिम्मेदार मानते हैं।