अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का यह बयान मौजूद है कि वह सऊदी अरब की रक्षा करेंगे और उसे सैनिक सहयोग देंगे ताकि कोई भी देश विशेष रूप से ईरान सऊदी अरब को कोई नुक़सान न पहुंचा सके।
यह बात उस देश के बारे में हो रही है जो अमरीका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट ख़र्च करता है। यहीं से विशेषज्ञों के बीच यह बहस शुरू हो गई है कि सऊदी अरब जब इतने बड़े पैमाने पर रक्षा बजट खर्च कर रहा है तो अपनी रक्षा ताक़त बढ़ा क्यों नहीं पा रहा है।
ईरान की बात तो दूर है यमन की सेना और स्वयंसेवी बलों के सामने सऊदी अरब बहुत कमज़ोर साबित हुआ है। सऊदी अरब ने दुनिया के बेहद ग़रीब देश यमन पर युद्ध थोपा जिसके बाद यमन की ओर से भी जवाबी हमले शुरू हो गए। इन जवाबी हमलों से खुद को बचा पाना सऊदी अरब के लिए बहुत कठिन हो गया। सऊदी अरब ने पाकिस्तान से सैनिक मांगे, उसने अफ्रीक़ी देशों विशेष रूप से सूडान सैनिक जमा किए।
जब आरामको के तेल प्रतष्ठानों पर हमला हो गया तो सऊदी अरब की कमज़ोरी बहुत ज़्यादा स्पष्ट होकर सामने आई। इस हमले के बाद अमरीका ने घोषणा की है कि वह कई हज़ार सैनिक सऊदी अरब में तैनात करेगा और इसका ख़र्च सऊदी अरब उठाएगा। अभी यह नहीं बताया गया है कि अमरीकी सैनिक कब से सऊदी अरब के भीतर तैनात होंगे और इस तैनाती की क्या क़ीमत सऊदी अरब अमरीका को अदा करेगा।
सऊदी अरब का रक्षा बजट 70 अरब डालर है यानी यह देश रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों से अधिक रक्षा बजट ख़र्च करता है लेकिन यह पैसे किस तरह और कहां ख़र्च करता है यह बात सामने नहीं आ रही है। जब आत्म रक्षा की बात आती है तो वह ईरान के सामने कहीं दूर दूर तक भी टिकता दिखाई नहीं देता हालांकि ईरान का रक्षा बजट 11 अरब डालर है।
पिछले तीन वर्षों में सऊदी अरब ने रक्षा के क्षेत्र पर 200 अरब डालर ख़र्च किए जबकि ईरान ने 30 अरब डालर ख़र्च किए यानी दोनों में लगभग सात गुना का अंतर है। ईरान को देखा जाए तो उसने बड़ी ताक़तवर सेना बना ली है, बहुत बड़ी सामरिक व रक्षा परियोजनाएं पूरी की हैं जिनकी मदद से वह न केवल यह कि इलाक़े में अमरीका और इस्राईल के एजेंडे को नाकाम बना रहा है बल्कि इस पूरे इलाक़े से अमरीका को बेदख़ल करता जा रहा है। सऊदी अरब की हालत यह है कि यमन युद्ध में कूद तो पड़ा है लेकिन इस युद्ध को कैसे समाप्त करे यह उसकी समझ में नहीं आ रहा है।
सऊदी अरब अपने सैनिकों के प्रयोग के उपकरणों और सैनिकों की तनख्वाहों पर सालाना 12 अरब डालर ख़र्च करता है तो शेष 58 अरब डालर कहां जाते हैं?!