नई दिल्ली। सरकार, उद्योग जगत, बाजार और जनता की उम्मीदों को धता बताते हुए रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने ब्याज दरों में कटौती का रास्ता साफ करने से इन्कार कर दिया है। rate review
चालू वित्त वर्ष में मौद्रिक नीति की पांचवीं दोमाही समीक्षा करते हुए आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने रेपो रेट को 6.25 फीसद पर ही बनाए रखने का एलान किया है। उनका यह चौंकाने वाला फैसला नोटबंदी की मार से हलकान अर्थव्यवस्था की रफ्तार को और सुस्त करने वाला साबित हो सकता है। rate review
मौद्रिक नीति समीक्षा
- रेपो रेट 6.25 फीसद पर स्थिर, सीआरआर में भी बदलाव नहीं
- आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटाकर 7.1 फीसद किया
- महंगाई की दर 5 फीसद रहेगी, लेकिन इसमें वृद्धि संभव
- नोटबंदी से अल्पकालिक तौर पर नकारात्मक असर
खास बात यह है कि केंद्रीय बैंक ने खुद ही चालू वित्त वर्ष की आर्थिक विकास दर के अनुमान 7.6 फीसद से घटाकर 7.1 फीसद कर दिया है। विकास अनुमान में कमी के लिए उसने नोटबंदी को ही अहम वजह बताया है। लेकिन महंगाई में तेज बढ़ोतरी की आशंका से आरबीआइ ने ब्याज दरों को लेकर कड़ा रवैया अख्तियार किया है।
रिजर्व बैंक की इस घोषणा के बाद बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स भी डेढ़ सौ अंक से ज्यादा नीचे आकर बंद हुआ।
आरबीआइ गवर्नर बनने के बाद पटेल की यह दूसरी और नोटबंदी के बाद पहली मौद्रिक नीति समीक्षा थी। बीते तीन माह में अर्थव्यवस्था में सुधार का कोई ठोस संकेत नहीं मिलने और साथ ही नोटबंदी से कई उद्योगों में मांग में भारी कमी की आशंका को देखते हुए सभी मानकर चल रहे थे कि रेपो रेट में 0.50 फीसद की कमी होगी।
ब्याज दरों में कोई राहत नहीं दी है। इसके पीछे एक वजह यह मानी जा रही है कि अभी ब्याज दरों को घटाने से बहुत फायदा नहीं होगा। एक तो बैंकों के पास तरलता (फंड) का कोई अभाव नहीं है और दूसरा मांग की भी बेहद कमी है। यही नहीं, आरबीआइ ने ब्याज दरों को घटाने के पहले जो उपाय किए हैं, उनका फायदा अभी तक बैंकों ने आम जनता को नहीं दिया है।