नई दिल्ली। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को इसी साल पार्टी की बागडोर मिल सकती है। राहुल को ऑल इंडिया कांग्रेस समिति के विशेष सत्र में पार्टी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ये विशेष सत्र दिल्ली में हो सकता है। सत्र का आयोजन इसी साल अगस्त या फिर नवंबर में होना है।
सूत्रों की मानें तो 1998 से पार्टी की कमान संभाले हुए सोनिया गांधी अपने पुत्र के लिए अध्यक्ष पद को छोड़ेंगी। हालांकि वह कांग्रेस संसदीय पार्टी (सीपीपी) की प्रमुख बनी रह सकती हैं। सूत्रों के अनुसार, राहुल को कमान मिलने के बाद वह पुरानी टीम के बजाए नई टीम के साम काम करना पसंद करेंगे।
पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले माना जा रहा है कि वह संगठन में बड़ा फेरबदल कर सकते हैं। नए महासचिवों के साथ साथ अन्य पदों पर नए लोगों की नियुक्तियां हो सकती हैं। वरिष्ठ नेताओं के साथ साथ नए चेहरों को भी राहुल की टीम में जगह दी जाएगी। लेकिन यूपी चुनाव के मद्देनज़र उत्तरप्रदेश में फेरबदल नहीं करेंगे।
दूसरी तरफ़ तमाम कयासों के बीच सूत्रों की मानें तो इस सत्र में सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी को में कोई पद दिए जाने की संभावना नहीं है। वह बाद में महासचिव (संगठन) का पद ले सकती हैं। माना जा रहा है कि अगले साल उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले भी वह पार्टी में कोई बड़ा पद न लें।
सोनिया गांधी अगस्त या नवंबर में राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंप सकती हैं क्योंकि अगस्त में राजीव गांधी (20 अगस्त) का जन्मदिन आता है, जबकि 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू और 19 नवंबर को इंदिरा गांधी का जन्मदिन आता है।
अध्यक्ष पद सौंपे जाने की प्रक्रिया से पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी गंभीरता से मंथन कर रही हैं। अपने सिपहसालारों से विचार कर रही हैं कि कांग्रेस का अधिवेशन कब बुलाया जाए। इसको लेकर जल्द ही घोषणा कर दी जाएगी। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि पार्टी अधिवेशन को अगस्त में बुलाया जा सकता है क्योंकि इससे अगले साल उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनावों पर ध्यान देने का वक्त मिल जाएगा। अगले साल गुजरात में भी चुनाव होने हैं।
उल्लेखनीय है पिछले दो सालों से अफवाहें उड़ रही हैं कि राहुल गांधी को पार्टी की कमान जल्द सौंपी जा सकती है। कई कांग्रेस नेता दबी ज़बान कह चुके हैं कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष और राहुल के उपाध्क्ष होने से पार्टी में सत्ता के दो केंद्र हो चुके हैं और इससे पार्टी के काम करने के तरीके पर असर पड़ रहा है।
जानकारों की मानें तो सोनिया के पद छोडऩे से राहुल गांधी को काम करने में आसानी होगी क्योंकि फिर वह अपने तरीके से पार्टी का फिर से पुर्नगठन कर सकते हैं। गौरतलब है कि 2004 और 2009 के आम चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस को 2014 में भारतीय जनता पार्टी नीत राजग गठबंधन के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।