संसद में दो सीटों से लोकसभा चुनाव जितने वाले राहुल गांधी को 18वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष चुना गया है। राहुल अपने दो दशक लंबे राजनीतिक करियर में पहली बार कोई संवैधानिक पद संभालेंगे। बताते चलें कि अभी तक ये पद रिक्त था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में पूर्ण बहुमत नहीं हासिल कर सके है जैसा कि पिछली दो बार से वह पूर्ण बहुमत पाने में सफल हुए थे और और इस बार सत्ता संचालन के लिए गठबंधन की सरकार बनी है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष बनने के अलावा अब राहुल गांधी के पास खुद को स्थापित और साबित करने का भी बड़ा अवसर है।
विपक्ष का नेता आज़ादी के बाद से ही देश के संसदीय लोकतंत्र में अहम भूमिका निभाता रहा है। लोकसभा में विपक्ष के पहले नेता डॉ. राम सुभग सिंह थे, जो 1969 से 1971 तक इस पद पर रहे।
मोर्चा सँभालने की बात कहें तो राहुल उस समय से अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं जिस समय विपक्ष बिलकुल ख़त्म हो चुका था और उनके पास अपनी बात कहने का कोई मंच नहीं था।
इस समय राहुल गांधी के सामने एक बड़ी ज़िम्मेदारी है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा पाएंगे? 18 लोकसभा के लिए जिस जनता ने उन्हें 99 सीटों पर कामयाबी दिलाई है उनकी अपेक्षाओं पर राहुल किस हद तक कामयाब होंगे इसका जवाब आने वाले समय के गर्भ में है।
राहुल गांधी को वर्ष 2013 में जयपुर में कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में उपाध्यक्ष चुना गया था। कांग्रेस तब से उन्हें भावी नेता के रूप में पेश कर रही थी मगर दूसरी तरफ सत्ता में आने से पहले भाजपा उनकी पप्पू इमेज बनाने में कामयाब हो चुका था। इस बीच साल 2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना सबसे न्यूनतम प्रदर्शन दिखाया और पार्टी मात्र 44 सीटें ही पा सकी।
2014 और 2019 में लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस इस पद का दावा नहीं कर सकी थी क्योंकि निचले सदन में उसके पास कुल सीटों का 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा था। दरअसल 543 सदस्यीय लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद पाने के लिए किसी विपक्षी दल को कम से कम 55 सीटों की ज़रूरत होती है।
इस समय 99 सीटों के साथ राहुल के पास इंडिया नाम का मज़बूत गठबंधन है, सक्रिय कार्यकर्त्ता के रूप में 20 साल का राजनितिक तजुर्बा है। जमीन से जुड़ने के लिए चार हज़ार किलोमीटर की पैदल यात्रा है। इस सबके साथ नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल पहली बार कोई संवैधानिक पद की ज़िम्मेदारी संभालेंगे।
लम्बे समय के बाद सत्तादल भी गठबंधन के सहारे अपना मुक़ाम हासिल कर सकी है। जिन राहुल गांधी के बारे में कुछ दिन पूर्व एक इंटरव्यू में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवाल किया था- “कौन राहुल?” आज वही राहुल उनके मुक़ाबले पर खड़े हैं ऐसे में राहुल गांधी के पास खुद को साबित करने का बड़ा ही शानदार मौक़ा है।
विपरीत हालात में राहुल डटे सत्ता के सामने डटे रहे और आज वह अपने संयम, प्रयास और मज़बूत इरादे से इतना कुछ पा सके हैं कि देश के नागरिकों का एक बड़ा प्रतिशत न सिर्फ उनके साथ है बल्कि बदलाव के लिए आशावान भी है।
देखा जाए तो राहुल इस मोर्चे पर खुद को जमाते नज़र आ रहे हैं। जिस तरह से उन्होंने संसद आने के लिए अपना गेटअप बदला है ये उसकी शुरुआत है।
मोर्चा सँभालने की बात कहें तो राहुल उस समय से अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं जिस समय विपक्ष बिलकुल ख़त्म हो चुका था और उनके पास अपनी बात कहने का कोई मंच नहीं था। इसके बावजूद राहुल डटे रहे और आज वह अपने संयम, प्रयास और मज़बूत इरादे से इतना कुछ पा सके हैं कि देश के नागरिकों का एक बड़ा प्रतिशत न सिर्फ उनके साथ है बल्कि बदलाव के लिए आशावान भी है।