केंद्र सरकार राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में सुधार चाहती है। फैसले में तथ्यात्मक सुधार के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सरकार फैसले के उस पैराग्राफ में सुधार चाहती है जिसमें कैग रिपोर्ट और संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के बारे में बताया गया है।
सरकार की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि कैग और पीएसी से जुड़े मुहरबंद दस्तावेज के मुद्दे पर अलग-अलग व्याख्या की जा रही है।
याद दिला दें कि सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार को शुक्रवार को क्लीन चिट देते हुए सौदे में कथित अनियमितताओं के लिए सीबीआई जांच की मांग करने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि व्यक्तियों की यह अनुभूति कि सौदे में गड़बड़ी हुई है जांच का आधार नहीं हो सकती। देश के मुख्य जस्टिस रंजन गोगोई, एसके कौल और केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि लड़ाकू विमानों की खरीद, उनकी कीमत और भारतीय ऑफसेट साझेदार के मामले में हस्तक्षेप के लिए उसके पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अंतर सरकारी समझौता तथा वायुसेना अध्यक्ष के यह कहने के बावजूद की कीमतों का खुलासा नहीं किया जा सकता, सरकार ने हमें कीमतों के बारे में बताया और उन पर एक नोट भी दिया। हमने कीमतों, उनकी तुलना, बेसिक विमान की कीमत तथा उसमें इजाफे (खरीद के मूल प्रस्ताव का आवदेन तथा अंतर सरकार समझौते के प्रकाश में) को बारीकी से देखा। यह कहना पर्याप्त होगा, जैसा कि सरकार ने भी कहा है कि 36 विमानों को खरीदने में व्यावसायिक लाभ था।
वहीं अंतर सरकारी खरीद समझौते में रखरखाव तथा हथियार पैकेज को लेकर अच्छी शर्तें थीं। निश्चित तौर पर इस तरह के मामलों में कीमतों की तुलना करना अदालत का काम नहीं है। हम इस बारे में ज्यादा नहीं कहेंगे क्योंकि यह मुद्दा गोपनीय रखा गया है।
राफेल लड़ाकू विमान के सौदे में अनियमित्ताओं का आरोप लगाते हुए इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का सीबीआई को निर्देश देने और न्यायालय की निगरानी में इसकी जांच के आग्रह के साथ ये याचिकायें दायर की गई थीं।
याचिका दायर करने वालों में भाजपा के दो नेता और पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता प्रशांत भूषण, अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और विनीत ढांडा तथा आप पार्टी के नेता संजय सिंह शामिल थे। शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर 14 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी। सबसे पहले इस मामले में कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने याचिका दायर की थी लेकिन उन्होंने बाद में उसे वापस ले लिया।