लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मीट कारोबारियों को गुरुवार को आश्वस्त किया कि राज्य सरकार पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कोई कार्य नहीं कर रही है.
अधिकारियों को निर्देश हैं कि वे किसी जाति विशेष, धर्म और चेहरे के आधार पर कार्रवाई ना करें.
प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री से उनके सरकारी आवास पर मीट कारोबारियों का ‘ऑल इण्डिया जमातुल कुरैश’ का प्रतिनिधिमण्डल मिला.
प्रतिनिधिमंडल ने मीट की बिक्री के सम्बन्ध में आ रही परेशानियों और समस्याओं के बारे में मुख्यमंत्री को बताया. प्रतिनिधिमण्डल ने इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री को अपना ज्ञापन भी सौंपा.
प्रतिनिधिमण्डल में देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिनिधि शामिल थे. उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री ने आधे घंटे चली बैठक में प्रतिनिधिमण्डल द्वारा बतायी गई समस्याओं और परेशानियों को ध्यानपूर्वक सुना और कहा कि यह सरकार सबकी है, जाति, पंथ, मजहब आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव या अन्याय नहीं होने दिया जाएगा.’
सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल से कहा कि यह सरकार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कोई काम नहीं कर रही है. अधिकारियों व कर्मचारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे निष्पक्ष होकर कार्य करें और किसी विशेष जाति, धर्म व चेहरे के आधार पर कार्रवाई न करें.
मंत्री ने बताया कि सकारात्मक वातावरण में हुई मुख्यमंत्री की वार्ता की प्रतिनिधिमण्डल ने सराहना की. प्रतिनिधिमण्डल ने मुख्यमंत्री के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अवैध चल रहे बूचड़खानों को बन्द करना चाहिए.
प्रतिनिधिमण्डल के अनुसार मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया है कि इस सम्बन्ध में किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा, पूरा इंसाफ होगा और नियमानुसार कार्य किया जाएगा.
इस अवसर पर ऑल इण्डिया जमातुल कुरैश के राष्ट्रीय अध्यक्ष सिराजुद्दीन कुरैशी सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद थे. योगी सरकार द्वारा अवैध बूचडखानों पर की जा रही कार्रवाई के फलस्वरूप मीट आपूर्ति कम होने से नाराज कारोबारियों ने पिछले तीन दिन से हड़ताल कर रखी है.
मालूम हो कि प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के गठन के बाद पूरे प्रदेश में अवैध बूचड़खानों को बंद कराने का अभियान शुरू कर दिया गया है.
इससे मांस के कारोबार से जुड़े हजारों लोगों के साथ मांसाहार परोसने वाले अनेक छोटे-बड़े होटलों के बड़ी संख्या में कर्मचारी बेरोजगार हो गये हैं.
देश से निर्यात किये जाने वाले मांस में उत्तर प्रदेश का योगदान करीब 50 प्रतिशत है और इस कारोबार से प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से करीब 25 लाख लोगों की रोजी रोटी जुड़ी है.
उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई की पृष्ठभूमि में लोकसभा में गुरुवार को राकांपा के एक सांसद ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए, अन्यथा डर के माहौल में 50 हजार करोड़ रुपये के इस उद्योग को नुकसान होगा.
राकांपा के तारिक अनवर ने शून्यकाल में इस विषय को उठाते हुए कहा कि अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई का हम स्वागत करते हैं लेकिन इनकी आड़ में कानूनी रूप से चल रहे कारोबारों को परेशानी नहीं होनी चाहिए.
उन्होंने मांग की कि राज्य सरकारें इस संबंध में एक ब्लूप्रिंट तैयार करें और इस तरह का प्रयास होना चाहिए कि बूचड़खानों को आधुनिक तरीके से चलाया जाए.
अनवर ने कहा, ‘यदि डर का माहौल बना तो 50,000 करोड़ रुपये के इस उद्योग को नुकसान होगा.’ उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि माहौल खराब नहीं हो.
मंगलवार (28 मार्च) को एक पर्यावरण हितैषी कार्यकर्ता ने उत्तरप्रदेश में ‘अवैध’’ बूचड़खाने के खिलाफ राष्ट्रीय हरित अधिकरण का रुख करते हुए आरोप लगाया कि ये सभी बिना निस्तारित किए अवजल खुली नाली में बहा देते हैं और पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं.
न्यायमूर्ति जवाद रहीम की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध याचिका में राज्य में अवैध बूचड़खाना बंद करने के एनजीटी के 2015 के आदेश की तामील करने की मांग भी की गयी.
याचिका में मामले में उत्तरप्रदेश सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य भूजल विभाग और अन्य को पक्ष बनाया गया है.
वकील अनुजा चौहान के जरिए दाखिल की गयी याचिका में उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में चार ‘अवैध’ बूचड़खाने के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गयी है.
उन्होंने आरोप लगाया है कि बूचड़खाने से जानवरों के अपशिष्ट और मृत जानवरों के खून से मिला अवजल बिना निस्तारित किए खुले नाले में बहा दिया जाता है जो गंगा और यमुना की सहायक नदियों में जाकर उन्हें प्रदूषित करती है.
याचिका में बूचड़खाने द्वारा सक्षम प्राधिकारों की अनुमति के बिना अवैध रूप से भूजल दोहन का मामला भी रेखांकित किया गया है और जानवरों की हड्डियों से वसा निकालने में भट्टियों से निकले धुआं से होने वाले वायु प्रदूषण के मुद्दे को भी उठाया गया है. अधिकरण ने मई 2015 में राज्य प्राधिकारों को मांस दुकानों के समुचित नियमन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था.