इलाहाबाद। काशी विश्वनाथ मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में 10 मई को होगी. काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट और अंजुमन इस्लामिया वाराणसी के बीच चल रहे मुकदमे में 1947 की स्थिति बहाल रखने, एक अंश ही मस्जिद रखने और शेष हिस्सा मंदिर के उपयोग में रखने के एडीजे, वाराणसी के 23 सितम्बर 1998 और 10 अक्टूबर 1997 के आदेश को सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड लखनऊ ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है.
याची का कहना है कि 1942 में ही मामला सिविल कोर्ट वाराणसी से निर्णित हो चुका है. 19 सितम्बर 1991 में पूजा अधिकार कानून आने के बाद मंदिर ट्रस्ट और अन्य ने वाद दायर किया. सिविल जज वाराणसी ने वक्फ बोर्ड की वाद में पक्षकार बनाने की अर्जी निरस्त कर दी और वाद बिंदु तय किए. आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी में राहत न मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.
याचिका में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर नाथ मूर्ति, सोमनाथ व्यास, राम रंग शर्मा, हरिहर पांडेय और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद, वाराणसी (वक्फ मस्जिद शाही आलमगीरी) को पक्षकार बनाया गया है. मंदिर की तरफ से दाखिल मूल वाद में मस्जिद हटा कर मंदिर को कब्जा सौंपने की मांग की गई है. सिविल कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट से रोक लगी है.
मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि एक बीघा, 9 बिस्वा, 6 धुर जमीन पर विश्वेश्वरनाथ मंदिर, गंगेश्वर, गंगादेवी, हनुमान जी, नन्दी जी, गौरी शंकर, गणेश, महाकालेश्वर, महेश्वर, श्रृंगार गौरी आदि कई मंदिर हैं. इसके साथ ही ज्ञानवापी कूप भी है. 2050 साल पहले महाराज विक्रमादित्य ने मंदिर बनवाया था.
नारायण भट्ट पुजारी ने अकबर सम्राट के मंत्री राजा टोडरमल के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. 1664 में औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने का आदेश दिया. मंदिर तोड़कर मलबे से मस्जिद का रूप दिया गया है. इसके बाद 1820 में महारानी गज्जी बाई ने मंदिर मुक्ति मंडप बनवाया. पुराने मंदिर में चारों तरफ चार मंडप थे, जिन्हें तोड़ डाला गया.
मस्जिद के हिस्से पर वक्फ का कब्जा है, जबकि आस-पास और मस्जिद के नीचे की जमीन मंदिर ट्रस्ट के कब्जे में है. अवैध कब्जे को हटाने की मांग में सिविल कोर्ट में मुकदमा कायम है. हाईकोर्ट के स्टे आॅर्डर के कारण सुनवाई रुकी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा की कोर्ट में 10 मई को मामले की सुनवाई होगी.