नाज़िर हैदर काज़मी के इंतेक़ाल की खबर ने सारे वुजूद को हिला कर रख दिया. मेरे उस बचपन का दोस्त जब हम नन्हे नन्हे थे .जौहरी मोहल्ले की तंग गलियों और कंपनी बाग़ में खेला करते थे .
हम सब उसके घर पर खेलने, लड़ने और धमाचौकड़ी मचाते .काकोरी के पास उसके गांव अमेठिया सलेम पुर जाते आम कहते ,नाज़िर की यज़्दी चलना मैने वही सीखी .कई कई गद्दे खाइये उसकी गाड़ी टूटी मगर उसके चहेरे पर बल नहीं.नाज़िर की वालिदा हम सब के लिये मज़ेदार खाना और नाश्ते की चीज़ें तैयार करतीं ..
क्या ज़माना था .हम बड़े हुए ..वक़्त और काम की वजह से दूरियां बढ़ीं.मिलना जुलना कम हुवा .मगर जब भी मुलाक़ात होती बचपन की यादें ताज़ा होजातीं ..वह बहुत मज़हबी था .हज ,ज़ियारतें सब अंजाम दे चूका था .कर्बला तालकटोरा की तामीरात में उसकी ख़ास दिलचस्पी थी.अपनी जेब ऐ ख़ास से उसने न मालूम कितना पैसा यहाँ लगाया .ग़रीबों की मद्दद करना और मजबूरों का सहारा बनना उसको अच्छा लगता था …मगर आज उसके इंतेक़ाल की खबर ने चौंकाया नहीं.
काफी दिनों से वह मौत और ज़िंदगी के बीच था.आज उसने सराय बंधन तोड़ दिये वह अब अच्छी जगह पहुँच गया .ऐसे लोग अब दुनिया में काम होते जा रहे हैं. खुदा उसके बच्चों और बीवी को सब्र अता करे.