नई दिल्ली। इतिहासकार एमजीएस नारायण ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को बयाए जाने वाले फैसले को बेवकूफी भरा बताया है। नारायण जो कि इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरियल रिसर्च ( ICHR ) के चेयरमैन भी रह चुके हैं उन्होंने कहा कि इस फैसले का पालन नहीं किया जाएगा और अंत में यह फेल हो जाएगा। मातृभूमि नाम की मैगजीन से बात करते हुए नारायण ने कहा, ‘लोग सिनेमाघर में मनोरंजन के लिए आते हैं। ऐसे में उनपर राष्ट्रवाद की भावना को दबाव के साथ नहीं डाली जानी चाहिए। इस तरीके से राष्ट्रवादी भावना का प्रचार नहीं हो पाएगा। यह अंत में फेल हो जाएगा।’ नारायण को इतिहास के बारे में जानकारी रखने वाले प्रमुख लोगों में शामिल किया जाता है।
इसके अलावा नारायण ने भारत को राष्ट्र भी मानने से इंकार किया। उन्होंने कहा कि इसे देशों या जातीयता का महासंघ कहा जा सकता है लेकिन एक देश नहीं। मैंने इसको कभी एक देश नहीं माना। उन्होंने आगे कहा, ‘राष्ट्रगान तभी अस्तित्व में आता है जब लोगों में राष्ट्रीयता की भावना हो। लेकिन ऐसी भावना किसी पर दबाव बनाकर पैदा नहीं की जा सकती, यह अपने आप आना चाहिए।’
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे फैसले का सकारात्मक नहीं बल्कि नकारात्मक प्रभाव होगा। नारायण को एनडीए सरकार में ICHR का प्रमुख बनाया गया था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रगान पर आया फैसला उनका ध्यान ‘तानाशाही’ की तरफ ले जाता है जो कि लोकतंत्र के खिलाफ है।
उन्होंने आगे कहा, ‘संविधान के आर्टिकल 51(ए) में साफ तौर पर कहा गया है कि राष्ट्र और उसके प्रतीकों का सम्मान न्यायिक बल का इस्तेमाल करके नहीं करवाया जा सकता।’ उन्होंने ईसाई धर्म मानने वाले उन बच्चों की बात को याद किया जिन्हें 1986 में सुप्रीम कोर्ट ने ही राष्ट्रगान ना गाने की इजाजत दी थी।