मुम्बई, 08 सितंबर : अपनी आवाज की कशिश से श्रोताआों को मदहोश करने वाली सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोंसले आज 88 वर्ष की हो गयी।
08 सितंबर 1933 को महाराष्ट्र के सांगली गांव में जन्मीं आशा भोंसले के पिता पंडित दीनानाथ मंगेश्कर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे। नौ वर्ष की छोटी उम्र में ही आशा के सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को उठाते हुए आशा और उनकी बहन लता मंगेश्कर ने फिल्मों में अभिनय के साथ साथ गाना भी शुरू कर दिया।
आशा भोंसले ने अपना पहला गीत वर्ष 1948 में ‘सावन आया’ गीत फिल्म चुनरिया में गाया। 16 वर्ष की उम्र में अपने परिवार की इच्छा के विरूद्ध जाते हुये आशा ने अपनी उम्र से काफी बड़े गणपत राव भोंसले से शादी कर ली। उनकी यह शादी ज्यादा सफल नही रही और अंततः उन्हे मुंबई से वापस अपने घर पुणे आना पड़ा।उस समय तक गीतादत्त,शमशाद बेगम और लता मंगेश्कर फिल्मों मे बतौर पार्श्वगायिका अपनी धाक जमा चुकी थी।
वर्ष 1957 में संगीतकार ओ.पी.नैय्यीर के संगीत निर्देशन में बनीं निर्माता-निर्देशक बी.आर.चोपड़ा की फिल्म नया दौर आशा भोंसले के सिने कैरियर का अहम पड़ाव लेकर आई। वर्ष 1966 में तीसरी मंजिल में आशा भोंसले ने आर.डी.बर्मन के संगीत में आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा गाना को अपनी आवाज दी, जिससे उन्हे काफी प्रसिद्धि मिली।
साठ और सत्तर के दशक में आशा भोंसले हिन्दी फिल्मो की प्रख्यात नर्तक अभिनेत्री हेलन की आवाज समझी जाती थी। आशा भोंसले ने हेलन के लिये तीसरी मंजिल में ओ हसीना जुल्फों वाली, कारवां में पिया तू अब तो आजा ,मेरे जीवन साथी में आओ ना गले लगा लो ना और डॉन में ये मेरा दिल यार का दीवाना गीत गाया।
शास्त्रीय संगीत से लेकर पाश्चात्य धुनों पर गाने में महारत हासिल करने वाली आशा भोंसले ने वर्ष 1981 में प्रदर्शित फिल्म उमराव जान से अपने गाने के अंदाज मे परिवर्तन किया। फिल्म उमराव जान से आशा भोंसले एक कैबरे सिंगर और पॉप सिंगर की छवि से बाहर निकली और लोगो को यह अहसास हुआ कि वह हर तरह के गीत गाने में सक्षम है।
उमराव जान के लिये दिल चीज क्या है और इन आंखो की मस्ती के जैसी गजलें गाकर आशा को खुद भी आश्चर्य हुआ कि वह इस तरह के गीत गा सकती है। इस फिल्म के लिये उन्हें अपने कैरियर का पहला नेशनल अवार्ड भी मिला।
1994 में अपने पति आर.डी.बर्मन की मौत से आशा भोंसले को गहरा सदमा लगा और उन्होने गायिकी से मुंह मोड़ लिया लेकिन उनकी जादुई आवाज आखिर दुनिया से कब तक मुंह मोड़े रहती ।उनकी आवाज की आवश्यकता हर संगीतकार को थी। कुछ महीनों की खामोशी के बाद इसकी पहल संगीतकार ए.आर.रहमान ने की।
रहमान को फिल्म रंगीला के लिये आशा की आवाज की जरूरत थी। आशा ने वर्ष 1995 में प्रदर्शित फिल्म रंगीला के लिये तन्हा तन्हा गीत गाया। आशा के सिने कैरियर में यह एक बार फिर महत्वपूर्ण मोड़ आया और उसके बाद
उन्होंने आजकल के धूम धड़ाके से भरे संगीत की दुनिया में कदम रख दिया।
आशा भोंसले को बतौर गायिका आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुके है ।आशा भोंसले को वर्ष 2001 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।इससे पूर्व उन्हें उमराव जान और
इजाजत में उनके गाये गीतों के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया।
आज रिमिक्स गीतों के दौर मे बनाये गये गानो पर यदि एक नजर डालें तो पायेगे कि उनमे से अधिकांश नगमें आशा भोंसले ने ही गाये थे। इन रिमिक्स गानो मे पान खाये सइयां हमार, पर्दे मे रहने दो,जब चली ठंडी हवा, शहरी बाबू दिल लहरी बाबू,झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में, काली घटा छाये मोरा जिया घबराये, लोगो न मारो इसे, कह दूं तुम्हें या चुप रहूं और मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो जैसे सुपरहिट गीत शामिल है। आशा भोंसले सात दशक के अपने सिने करियर में 12 हजार से अधिक दिलकश और मदहोश करने वाले गीत दे चुकी हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी ,बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल,मलयालम और अंग्रेजी भाषाओं में भी गीत गाये हैं।
आशा भोंसले ने हिन्दी फिल्मी गीतों के अलावा गैर फिल्मी गाने गजल, भजन और कव्वालियो को भी बखूबी गाया है। जहां एक ओर संगीतकार जयदेव के संगीत निर्देशन में जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा की कविताओ को आशा ने अपने स्वर से सजाया है वही फिराक गोरखपुरी और जिगर मुरादाबादी के रचित कुछ शेर भी गाये हैं। जीवन की सच्चाइयों को बयान करती जिगर मुरादाबादी की गजल मैं चमन में जहां भी रहूं मेरा हक है फसले बहार पर उनके जीवन को भी काफी हद तक बयां करती है।