नयी दिल्ली 20 फरवरी : तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख सदस्य और स्वराज इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की मौजूदा व्यवस्था को पाखंड करार देते हुए कहा है कि या तो सरकार इसको कानून के दायरे में लाये या फिर इसे समाप्त कर दे।
योगेंद्र यादव ने कहा कि एमएसपी के नाम पर इस देश में पिछले 50 वर्षों से पाखंड हो रहा है और अब तक किसानों के साथ छलावा किया जाता रहा है। सरकार को अब इस व्यवस्था को या तो कानूनी जामा पहनाना चाहिए या फिर इसे समाप्त कर देना चाहिए।
देश में करीब 14 करोड़ किसान हैं लेकिन मौजूदा एमएसपी व्यवस्था का लाभ बमुश्किल दस से 15 फीसदी किसानों को ही मिल पाता है और उसमें भी ज्यादातर बड़े किसान शामिल होते हैं।
उन्होंने कहा कि एमएसपी का निर्धारण करने वाला कृषि लागत और मूल्य आयोग सरकारी संस्था तो है लेकिन इसे संवैधानिक दर्जा हासिल नहीं है इसलिए इसकी सिफारिशें सरकार पर बाध्यता नहीं होती। यही कारण है कि एमएसपी की व्यवस्था केवल कागजों तक ही सीमित रहती है और जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पाती। मंडियों में किसानों की दुर्दशा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब किसान फसल मंडी में लेकर जाता है तो किसी न किसी बहाने से उसे एमएसपी के बराबर कीमत नहीं दी जाती और उसकी फसल की बोली एमएसपी से नीचे ही लगायी जाती है।
उन्होंने कहा कि देश में करीब 14 करोड़ किसान हैं लेकिन मौजूदा एमएसपी व्यवस्था का लाभ बमुश्किल दस से 15 फीसदी किसानों को ही मिल पाता है और उसमें भी ज्यादातर बड़े किसान शामिल होते हैं।
श्री यादव ने कहा कि एमएसपी के लिए भी शिक्षा के अधिकार की तर्ज पर संसद में कानून बनाया जाना चाहिए जो पूरे देश में लागू होना चाहिए जिससे कि पूरे देश में फसल का एक दाम एमएसपी के आधार पर तय किया जाये। उन्होंने कहा कि इससे निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में एमएसपी को लागू करने की बाध्यता हो जायेगी तथा छोटे और बड़े दोनों किसानों को इसका फायदा होगा। एमएसपी को कानून के दायरे में लाने का एक और फायदा यह होगा कि यदि किसी भी किसान की फसल एमएसपी से नीचे खरीदी जाती है तो उसके पास कानून का दरवाजा खटखटाने का विकल्प होगा। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उसके बाद किसान की फसल की बोली एमएसपी के बराबर या उससे उपर से ही शुरू होगी।
यह पूछे जाने पर कि सरकार एमएसपी के बारे में लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है उन्होंने कहा कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडना चाहती है। उन्होंने कहा कि अभी भी फसल का एमएसपी तय करने वाली सरकारी संस्था लिखित में ही एमएसपी की घोषणा करती है लेकिन उसकी कानूनी अहमियत न होने के कारण वह लागू नहीं हो पाती। सरकार के दावे कि एमएसपी थी, है और रहेगी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब यह बात है तो इसे कानून के दायरे में लाने में क्या दिक्कत है।
एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मूंगफली का एमएसपी 5275 रूपये प्रति क्विंटल है जबकि कर्नाटक में यह औसतन 4494 रूपये प्रति क्विंटल के मूल्य पर खरीदी गयी है।