केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट देश में दलित मुस्लिमों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने के सम्बन्ध में अपनी बात कही। अनुसूचित जाती यानी एससी आरक्षण के अंतर्गत उन्हें नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में कोई आरक्षण नहीं दिया जाता है। वर्तमान में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण केवल हिंदू, सिख या बौद्ध समुदाय के लोगों को ही दिया जाता है।
हिंदू, सिख या बौद्ध समुदाय के लोगों को यह आरक्षण संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 के तहत प्रदान किया जाता है। केंद्र सरकार ने यह भी साफ़ किया कि अतीत में जो समूह दलित थे, मगर बाद में उन्होंने इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लिया, और इन दोनों धर्मों में अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराई नहीं है। ऐसे में इन लोगों को अनुसूचित जाती का दर्जा नहीं मिला है।
धर्म परिवर्तन कर इस्लाम और ईसाई बनने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है.
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— AajTak (@aajtak) November 10, 2022
कई याचिकाओं के माध्यम से संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। केंद्र ने इस पर बुधवार को होने वाली सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा।
इन याचिकाओं उन मुस्लिमों और ईसाईयों को भी आरक्षण दिए जाने की मांग की गई है। जिन्होंने दलित के बजाय इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लिया है। केंद्र ने अपने स्पष्टीकरण में कहा कि अनुसूचित जाति का दर्जा एक सामाजिक कलंक और पिछड़ेपन पर केंद्रित है। साथ ही इस सुविधा को 1950 के उक्त आदेश के तहत मान्यता प्राप्त समुदायों के लिए ही सीमित बताया।
पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है। यह आयोग इस बात की जांच करेगा कि क्या दलित मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का अनुसूचित जाति आदेश 1950 ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित था। जिससे साबित होता है कि ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों ने कभी भी सामाजिक पिछड़ेपन अतरहवा उत्पीड़न की परिस्थितियों का सामना नहीं किया है। अपनी दलील में सरकार का कहना है कि अतीत में अनुसूचित जाति के लोगों का इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे धर्मों को अपनाने की असल वजह अस्पृश्यता से मुक्ति पाना रही है। जो कि ईसाई या इस्लाम में बिलकुल नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार ने ये मुद्दा भी प्रस्तुत किया कि पिछले महीने पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है। यह आयोग इस बात की जांच करेगा कि क्या दलित मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है।