हिमाचल प्रदेश में बारिश और भूस्खलन से होने वाली तबाही में अबतक 70 लोगों की मौत हो चुकी है। हिमाचल में राष्ट्रीय राजमार्ग 5 सहित कालका-शिमला मार्ग का 40 किलोमीटर लंबा भाग और परवाणु-सोलन मार्ग के कई हिस्से इस भूस्खलन की चपेट में आने से तबाह हो गए हैं।
ज़मीन धंसने के कारण इस इलाके में दर्जनों मार्ग बंद हो गए हैं। दर्जनों मकान जमींदोज हो जाने से इन मौतों का आंकड़ा बढ़कर 70 हो चुका है।
प्रदेश में राहत और बचाव अभियान के लिए सेना, वायुसेना और पुलिस सहित एसडीआरएफ तथा स्थानीय अधिकारी जुटे हैं। केंद्रीय बल की 29 टीमें तैनात की गई हैं। एनडीआरएफ के मुताबिक़ इनमें 14 टीमें सक्रिय हैं जबकि शेष टीमों को तैयार रखा गया है।
जिओलॉजिस्ट और विशेषज्ञों का इस आपदा पर बड़ा बयान आया है। इस तबाही के लिए उन्होंने नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया को जिम्मेदार ठहराया है। इनका कहना है कि सड़कों को चौड़ा किये जाने के प्रयास में सड़कों का अलाइनमेंट बदला जा सकता था।
जिओलॉजिस्ट और विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सड़कों को चौड़ा करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता थी, तो या तो वहां सुरंगों का निर्माण कराया जाता या फिर सड़कों का अलाइनमेंट बदला जाता।
हिमाचल प्रदेश: शिमला की आपदा पर भूवैज्ञानिक का बड़ा बयान, बताया- तबाही के लिए कौन है जिम्मेदार।#HimachalPradesh https://t.co/cwI7YbUuql
— Navjivan (@navjivanindia) August 17, 2023
नवजीवन में छपी एक खबर के मुताबिक़ इंडियन एक्सप्रेस से पंजाब विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में मानद प्रोफेसर और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक ओम भार्गव ने कहा कि पहाड़ों की वर्टिकल कटाई ने ढलानों को अस्थिर कर दिया है। बारिश हो या न हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। देर-सबेर, यह ढलानें तो संतुलन स्थापित करती है। इसके लिए वह नीचे की ओर ही खिसक जाती हैं।
आगे ओम भार्गव कहते हैं कि वर्टिकल कटिंग का मतलब है कि पहाड़ का ढलान 90 डिग्री के बेहद करीब हो जाता है, जबकि भूवैज्ञानिकों के अनुसार, ढलान 60 डिग्री से कम होना चाहिए। उन्होंने ने कहा कि यही वजह है कि राजमार्ग के ढलानों पर लगातार पत्थरों की बारिश हो रही है। ऐसे में राजमार्ग की एक लेन पर यातायात बाधित हो रहा है।