हरियाणा में प्रस्तावित अरावली जू सफारी परियोजना का कड़ा विरोध करते हुए भिन्न प्रदेशों के 37 रिटायर्ड भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। इन अधिकारीयों ने इस क्षेत्र के नाज़ुक पर्यावरण को बचाने की अपील की है।
पूर्व आईएफएस अधिकारीयों ने अरावली पहाड़ियों में निजी निवेश को खतरनाक बताया है। इन लोगों का कहना है कि इससे वन्यजीवों के आवास में बाधा आएगी, जल संकट बढ़ेगा और व्यावसायिक शोषण का जोखिम भी बढ़ेगा।
इन पूर्व अधिकारियों ने पर्यावरणीय खतरों को उजागर करते हुए प्रधानमंत्री मोदी से प्राचीन अरावली श्रृंखला के संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की है।
प्रधानमंत्री के अलावा इस पत्र की प्रतिया अन्य ज़िम्मेदार महकमों में भी भेजी गई हैं। इनमे केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के मंत्री और सचिव, वनों के महानिदेशक और चार अरावली राज्यों के मुख्य सचिव को पत्र के माध्यम से सूचित किया गया है।
बताते चलें कि अरावली जंगल सफारी परियोजना, हरियाणा सरकार की ईको-टूरिज्म के तहत एक महत्वाकांक्षी पहल है। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में साल 2022 के अप्रैल में इसे शुरू किया गया था।
हरियाणा सरकार ने इस परियोजना से संबंधित मामलों की निगरानी के लिए जनवरी में प्रधान मुख्य वन संरक्षक-सह-मुख्य वन्यजीव वार्डन के अधीन आठ सदस्यीय समिति का गठन किया था।
जंगल सफारी बनाने के मक़सद से शुरू की गई यह परियोजना 10 हज़ार एकड़ क्षेत्र में फैली है जो गुरुग्राम और नूंह जिलों में आती है। इस परियोजना का मकसद पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ रोजगार सृजन करना और निजी निवेश को आकर्षित करना है।
इसे विश्व के सबसे बड़े जंगल सफारी के रूप में विकसित करने की योजना है। इसमें सफारी ज़ोन के साथ एक एवियरी (पक्षी गृह), अंडरवॉटर ज़ोन और स्थानीय वनस्पतियों व जीव-जंतुओं को प्रदर्शित करने वाले जैव विविधता पार्क शामिल होंगे।
इस परियोजना को लेकर राज्य सरकार का दावा है कि हरियाणा को एक प्रमुख वन्यजीव पर्यटन स्थल के रूप में पहचान दिलाने के साथ यह घरेलू व अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगी।