बीबीसी की एक खबर से पता चलता है कि नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ने ज़मीन के धसने से जुड़ा एक अध्ययन किया, जिसके नतीजे हैरान करने के साथ बड़े खतरे के प्रति भी आगाह करते हैं।
एनटीयू की रिपोर्ट से पता चला है कि जमीन धंसने का सबसे गंभीर मामला चीन के तियानजिन का है। यहां औद्योगिक और बुनियादी विकास तेजी से हुआ है। साल 2014 से 2020 के बीच शहर के सबसे अधिक प्रभावित हिस्से में औसतन हर साल 18.7 सेंटीमीटर जमीन धंसी है।
एनटीयू के अध्ययन के अनुसार, 2014 से 2020 के बीच कोलकाता के कुछ हिस्सों में औसतन प्रति वर्ष 0.01 सेंटीमीटर से 2.8 सेंटीमीटर तक जमीन धंसी है। अख़बार का अनुमान है कि इन धंसते हुए क्षेत्रों में 90 लाख लोग रहते हैं।
कई धंसते हुए शहर एशिया या दक्षिण-पूर्व एशिया में है। इसका कारण यह है कि यहां की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है और विकास भी बहुत हो रहा है। पानी की मांग कहीं ज़्यादा है।
एनटीए की यह स्टडी बताती है कि सबसे तेजी से धंसने वाले क्षेत्रों में से एक भाटपारा था, जहां हर साल 2.6 सेंटीमीटर जमीन धंस रही थी। वहीं नासा के अनुसार, 2024 में समुद्र के स्तर में 0.59 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोलकाता में भूमि धंसने का कारण भूजल का अत्यधिक दोहन करना है। ऐसे में जानकारों की ओर से चेतावनी देते हुए कहा गया है कि कोलकाता में जिन क्षेत्रों में जमीन धंस रही है, वहां भूकंप और बाढ़ का ख़तरा अधिक है।
चेन्नई की स्थिति के विश्लेषण के बाद अख़बार की रिपोर्ट बताई है कि एनटीयू के अनुसार, 2014 से 2020 के बीच के कुछ हिस्सों में जमीन हर साल 0.01 सेंटीमीटर से 3.7 सेंटीमीटर तक धंसी है। इन धंसते हुए क्षेत्रों में 14 लाख (1.4 मिलियन) लोग रहते हैं।
चेन्नई शहर में सबसे तेज़ी से धंसते हुए क्षेत्रों में से एक थरमणि है। ये भी रिपोर्ट से पता चला है। यहां प्रति वर्ष औसतन 3.7 सेंटीमीटर जमीन धंसी है। वहीं, नासा के अनुसार 2024 में समुद्र के स्तर में 0.59 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चेन्नई के उन क्षेत्रों में तेजी से भूमि धंस रही है, जहां कि कृषि, औद्योगिक और घरेलू गतिविधियों के लिए भारी मात्रा में भूजल का दोहन किया गया है।
इन मामलों पर नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की चेरेल टे का कहना है कि कई धंसते हुए शहर एशिया या दक्षिण-पूर्व एशिया में है। इसका कारण यह है कि यहां की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है और विकास भी बहुत हो रहा है। पानी की मांग कहीं ज़्यादा है।
इस ख़तरे को देखते हुए भारत सरकार ने भूजल प्रबंधन में सुधार करने के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं। खतरे को कम करने के लिए ऐसा इसलिए किया गया ताकि पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन किया जा सके।