नई दिल्ली। क्या लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना वांछित है? इस सवाल के साथ-साथ सरकार ने इसी मुद्दे से जुड़े अन्य कई सवालों को अपनी वेबसाइट ‘माईगोव डॉट कॉम’ पर पोस्ट किया है ताकि वह आम जनता, सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों, संवैधानिक विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, नौकरशाहों और सोशल मीडिया पर पकड़ रखने वालों सहित इसमें ‘‘दिलचस्पी रखने वाले सभी लोगों’’ के विचार जान सके। इस मुद्दे पर अपने विचार देने की अंतिम तिथि 15 अक्टूबर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस संबंध में विचार रखे जाने तथा बाद में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा भी ऐसा ही कहने के बाद उक्त कदम उठाया गया है। public opinion
क्या एक साथ चुनाव कराना वांछनीय है? इसके लाभ और हानि क्या हैं? यदि एक साथ सभी चुनाव कराए गए तो, जिन विधानसभाओं का कार्यकाल चुनाव की तिथि के बाद समाप्त होने वाले हैं, उनका क्या होगा? क्या लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल तय कर दिया जाना चाहिए? कार्यकाल के बीच यदि उपचुनाव कराने की नौबत आई तो क्या होगा? क्या होगा यदि लोकसभा या राज्यों की विधानसभाओं में सत्तारूढ़ दल या सत्तारूढ़ गठबंधन अपना बहुमत मध्यावधि में खो देता है? ऐसे सवालों के कारणों को समझाते हुए एक नोट में कहा गया है, ‘‘लोकसभा और विधानसभाओं के लिए साथ-साथ चुनाव कराने की वांछनीयता पर विभिन्न स्तरों पर चर्चा हुई है। एक विचार यह भी है कि साथ-साथ चुनाव कराने से ना सिर्फ मतदाताओं का उत्साह बना रहेगा, बल्कि इससे काफी धन की बचत होगी और प्रशासनिक प्रयासों की पुनरावृति से भी बचा जा सकेगा।’’ उसमें कहा गया है, ‘‘इसके माध्यम से राजनीतिक दलों के खर्च पर भी नियंत्रण लगाने की आशा की जा रही है। साथ-साथ चुनाव होने से बार-बार चुनावी आदर्श आचार संहिता भी लागू नहीं करनी पड़ेगी, जिसके कारण सरकार की प्रशासनिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं।’’ नोट में इंगित किया गया है कि यदि साथ-साथ चुनाव कराने का फैसला लिया जाता है तो कई ढ़ांचागत सुधार करने होंगे जिसमें संविधान के अनुच्छेदों 83, 172, 85 और 174 का संशोधन भी शामिल है। public opinion