भारत में कोरोना संकट की वजह से लाखों मजदूर बेरोजगार हुए हैं, वहीं निजी क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों के सामने भी रोजगार का गंभीर संकट है. ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवा आजीविका का रास्ता अपने गांवों में तलाश रहे हैं.
प्रयागराज के लालगोपालगंज के रहने वाले संजय कुमार ग्रेटर नोएडा की सैमसंग कंपनी में इंजीनियर थे. पैंतीस हजार रुपये महीने की उनकी तनख्वाह थी. लॉकडाउन शुरू होने से ठीक पहले संजय अपने गांव वापस आ गए और अब ठान लिया है कि लौटकर शहर नहीं जाएंगे. संजय कुमार बताते हैं, “हमारी नौकरी गई नहीं लेकिन हम खुद छोड़कर आ गए.
हमारे कई साथी भी छोड़ गए. इसके पीछे कारण यह था कि तमाम कंपनियों में छंटनी हो रही थी और हमें भी आशंका थी कि हमारी नौकरी चली जाएगी. जिस दिन मोदी जी ने जनता कर्फ्यू लगाया यानी 22 मार्च को मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ गांव वापस आ गया.”
संजय कुमार बताते हैं कि यहां वो अपना थोड़ा बहुत जो सामान था लेकर आ गए और यह सोच लिया कि गांव में रहकर खेती करेंगे. वो कहते हैं, “मैं दिल्ली, मुंबई और ग्रेटर नोएडा में अलग-अलग कंपनियों में सात साल से नौकरी कर रहा हूं. जितना काम करता हूं और जितनी मेरी योग्यता है, उसके हिसाब से पैंतीस-चालीस हजार रुपये की नौकरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है.
दस-बारह घंटे काम भी करना पड़ता है और घर से दूर रहना अलग. वहां से आने के बाद मैंने अपने खेत में तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, लौकी जैसी सब्जियां और फल बोए हैं. हालांकि इससे पहले मैंने कभी खेती नहीं की थी लेकिन उम्मीद है कि कर लूंगा.”
संजय कुमार की तरह गाजीपुर के रहने वाले आफताब अहमद भी हैं. आफताब अहमद बेंगलुरु की एक कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. अच्छा-खासा वेतन पाते थे लेकिन उसी अनुपात में खर्च भी था. इसलिए बचत कुछ खास नहीं होती थी. उनकी पत्नी भी एक स्कूल में पढ़ाती थीं. आफताब बताते हैं, “लॉकडाउन से पहले ही कंपनी ने छंटनी और वेतन में कटौती के संकेत दे दिए थे.
गांव में हमारे पास करीब बारह बीघे खेत हैं और मेरे पिताजी अकेले ही वहां थोड़ी-बहुत खेती कराते हैं. गाजीपुर के कुछ किसान पिछले कुछ सालों में सब्जियों की अच्छी खासी खेती कर रहे हैं और सब्जियां एक्सपोर्ट कर रहे हैं. मैंने सोचा कि क्यों न हम भी ऐसा करें. बस यही सोचकर सब कुछ समेटकर चल दिया.”
आफताब ने अभी कुछ खास योजना तो नहीं बनाई है लेकिन दो बातें उनके दिमाग में स्पष्ट हैं, एक तो वो लौटकर शहर नहीं जाएंगे और दूसरे, गांव में ही खेती और मछली-पालन करेंगे. वो बताते हैं, “खेती में क्या करना है, उस पर थोड़ा रिसर्च कर रहा हूं. ऑर्गेनिक तरीके से अनाज और सब्जियों का भी उत्पादन का विकल्प है और फूलों की खेती का भी. कुछ पैसे बचाकर रखे हैं, उन्हें खेती में ही इन्वेस्ट करना है और उम्मीद है कि आमदनी भी इतनी हो जाएगी जितने में हम सम्मान के साथ जीवन-यापन कर लेंगे.”
(dw.com)