वर्ष 1989 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सन्धि पारित हुई और इसे एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में देखा गया। इस संधि के ज़रिए देशों की सरकारों को बच्चों को हिंसा और शोषण से बचाने की दिशा में क़दम उठाने के अलावा अनेक क़ानूनों को भी स्वीकृति देने के लिए प्रोत्साहित किया।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा लिए गए इस संकल्प को वर्ष 2024 में 35 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस संकल्प के तहत सशस्त्र टकरावों के दौरान सैनिकों के रूप में इस्तेमाल किए जाने से बच्चों की रक्षा की बात कही गई थी। इसके बावजूद हथियारबन्द गुटों द्वारा बाल सैनिकों की भर्ती सहित उनके इस्तेमाल के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
संयुक्त राष्ट्र सन्धि पारित होने के एक दशक बाद, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की सैनिकों के रूप में भर्ती पर पाबन्दी के लिए एक प्रोटोकॉल को पारित किया गया। अब तक इस प्रोटोकॉल पर 173 देशों ने मुहर लगा कर अपनी स्वीकृति भी दर्ज की है।
इस प्रथा को रोकने के लिए इतने क़दम उठाए जाने के बावजूद इन सैन्य तौर-तरीक़ों का अन्त करने के बजाय हथियारबन्द गुटों द्वारा सशस्त्र टकरावों के दौरान बाल सैनिकों की भर्ती और उनके इस्तेमाल में वृद्धि देखने को मिली है।
रिपोर्ट के मुताबिक़, इसके प्रभावों को इसराइल द्वारा अधिकृत फ़लस्तीनी इलाक़े, सूडान, लेबनान, म्याँमार और यूक्रेन में देखा जा सकता है।
संयुक्त राष्ट की रिपोर्ट से पता चलता है कि कम्बोडिया से लेकर काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, लेक चाड बेसिन, मोज़ाम्बीक़, सहेल क्षेत्र, सूडान, सोमालिया, सीरिया और हेती समेत अन्य देशों में ऐसे मामले सामने आए।
खबर से यह भी खुलासा होता है कि अधिकांश को अगवा करने के बाद उन्हें जबरन भर्ती किया गया था। इतना ही नहीं, इसमें बड़ी संख्या में लड़कियों के बलात्कार और यौन हिंसा का शिकार बनाये जाने की ख़बरें भी सामने आई हैं। इस दौरान उनकी ख़रीद-फ़रोख़्त, के अलावा तस्करी की ओर धकेले जाने की भी घटनाएँ भी उजागर हुई हैं।
यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि ने सशस्त्र टकरावों और बच्चों के लिए क्षोभ व्यक्त किया और कहा कि सैन्य टकराव का इस्तेमाल बढ़ने का बच्चों पर भयावह असर हुआ है। यूएन प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा ने कहा कि बच्चों की कराह, हिंसक टकरावों से जूझ रहे इलाक़ों में सुनी जा सकती है, मगर इसके बावजूद दुनिया ने चुप्पी ओढ़ रखी है।
उन्होंने बच्चों तक ज़रूरी सहायता पहुँचाने के लिए बेरोकटोक मानवीय सहायता मार्ग मुहैया कराए जाने और अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन करने की अपील की है।
आगे उन्होंने रिहायशी इलाक़े में बड़े पैमाने पर असर डालने वाले विस्फोटकों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात भी कही है। इसमें स्कूलों का सैन्य मक़सद से इस्तेमाल पर पाबन्दी लगाने तथा बारूदी सुरंगों का उन्मूलन की भी बात कही गई है।