नई दिल्ली। नोटबंदी पर जारी बहस के बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट में फेरबदल कर सकते हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह अहम बदलाव होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अगले छह महीनों में होने हैं। अगर मंत्रिमंडल में बदलाव होता है तो चुनावी राज्यों का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग के अचानक इस्तीफा देने के बाद कैबिनेट में बदलाव से ‘गवर्नरों में भी बदलाव’ हो सकता है। हालांकि इस संबंध में केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से कोई अाधिकारिक बयान नहीं दिया गया है। Demonetisation
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना दूसरा मंत्रिपरिषद विस्तार मई 2014 में सत्ता की बागडोर संभालने के दो साल से थोड़े अधिक समय बाद किया। कई दलित और ओबीसी नेताओं को अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर जगह दी गई है। जुलाई में जब मोदी ने कैबिनेट में बदलाव किया था तो ऐसा सिर्फ समीकरणों के चलते नहीं, गवर्नेंस की वजह से भी किया गया।
पार्टी और सरकार को संदेश देते हुए नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ कैबिनेट का आकार बड़ा किया बल्कि मंत्रालयों में भी व्यापक स्तर पर बदलाव किए। जुलाई के कैबिनेट फेरबदल में तुलनात्मक तौर पर युवा मुख्तार अब्बास नकवी को अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया। उन्होंने नजमा हेपतुल्ला की जगह ली जो 75 साल की अनाधिकारिक सीमा को पार कर चुकी थी। जहां नजमा को मणिपुर का राज्यपाल बना दिया गया, वहीं केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र उम्र की सीमा पार करने के बावजूद मंत्रिमंडल में बने रहे।
पांच मंत्रियों को हटाने के बावजूद मोदी ने 78 मंत्रियों का मंत्रिमंडल बनाया। संविधान के अनुसार, लोकसभा की कुल संख्या के अधिकतम 15 प्रतिशत तक ही मंत्री नियुक्त किए जा सकते हैं। कांग्रेस ने जुलाई के कैबिनेट फेरबदल केा ‘वोट जुटाने वाली कवायद’ बताया था। विपक्ष का आरोप था कि चुनावी राज्यों को ध्यान में रखकर यह परिवर्तन किया गया और नरेंद्र मोदी का ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ का ‘ऊंचा दावा’ ‘नौटंकी’ बन गया है। कई दलित और ओबीसी नेताओं को अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर जगह दी गई थी।