नई दिल्ली : माजवादी दंगल पर चुनाव आयोग ने अपना फैसला सुना दिया है।चुनाव आयोग ने सोमवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में सपा को अखिलेश के हाथों में सौंप दिया है। cycle
फैसला लेने से पहले चुनाव आयोग पूरे दिन इस मुद्दे पर मंथन करता रहा। चुनाव आयोग ने फैसला लेने से पहले ‘साइकिल’ फ्रीज करने के कानूनी पहलुओं पर भी विचार किया।
लेकिन, साइकिल को फ्रीज करने में सबसे बड़ा कानूनी पेंच यह था कि समाजवादी पार्टी में टूट नहीं हुई थी।
अब तक जितनी भी बार चुनाव चिन्ह फ्रीज हुआ है तब-तब पार्टियां दो फाड़ हुई थीं लेकिन सपा में मामला अलग था।
सपा दो फाड़ नहीं हुई थी बल्कि अखिलेश और मुलायम दोनों ग्रुप पार्टी पर अपना दावा जता रहे थे। सपा में अपने दावों को मजबूत करने की खातिर एक ओर जहां मुलायम संविधान की दुहाई दे रहे थे तो अखिलेश पार्टी में बहुमत का दम दिखा रहे थे।
अपने मंथन में चुनाव आयोग को अखिलेश का पलड़ा ज्यादा भारी नजर आया और उसने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अखिलेश के नाम पर अपनी मुहर लगा दी।
आयोग को सोमवार को निर्णय लेना इसलिए जरूरी हो गया था क्योंकि मंगलवार को पहले चरण के मतदान की अधिसूचना जारी होनी है।
पहले दिन से ही कई लोग अपना नॉमिनेशन करने लगते हैं। सपा पिछले चुनाव की सबसे बड़ी पार्टी थी और वही अपने निशान को लेकर दुविधा में थी।
चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद अब पिछले कई दिनों से चल रही कशमकश खत्म हो चुकी है।
मुलायम और अखिलेश ने पहले ही साफ कर दिया था कि वे चुनाव आयोग के फैसले को मानेंगे और उसके खिलाफ अदालत नहीं जाएंगे।
पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अब चुनाव चिह्न कोई भी हो, चुनाव वही प्रत्याशी लड़ेंगे जिनके टिकट उनके दस्तखत से जारी होंगे।
मुलायम सिंह यादव ने दावा किया कि ये मामला उनके बाप-बेटे के बीच में है, बेटे को कुछ लोगों ने बहका दिया।
उन्होंने रामगोपाल यादव का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारों इशारों में बहुत कुछ कह दिया।
इससे पहले मुलायम सिंह यादव अमर सिंह और शिवपाल यादव के साथ चुनाव आयोग पहुंचे थे।
चुनाव आयोग में उन्होंने पार्टी संविधान का हवाला देते हुए दावा किया कि वही हैं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिलेश कैंप के दावों में कोई दम नहीं है।
मुलायम ने चुनाव आयोग से कहा कि पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष को हटाया नहीं जा सकता है।
राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने के लिए कम से कम 30 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य है, जिसका पालन नहीं किया गया।
मुलायम गुट ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की एक प्रक्रिया है, जिसका पालन नहीं किया गया।
रामगोपाल यादव को पहले से ही उनके पद से हटा दिया गया था। लिहाजा वो कोई रेजोल्यूशन नहीं ला सकते।
उनके पार्टी से जुड़ने का ऐलान सिर्फ ट्विटर के जरिए ही हुआ था, जो कि मान्य नहीं हो सकता। cycle
सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को हटाने का कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया था। लिहाजा नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने का औचित्य ही नहीं पैदा होता। अखिलेश कैंप जिनके समर्थन का दावा कर रहा है, चुनाव आयोग उनका फिजिकल वैरिफिकेशन करवाए।
उधर अखिलेश यादव के समर्थक रामगोपाल यादव की अगुवाई में चुनाव आयोग पहुंचे तो चुनाव आयोग से चुनाव की तारीखें पास आने की बात रखते हुए इस मामले में जल्द फैसला लेने की अपील की।
हालांकि जब रामगोपाल यादव से नेताजी के अखिलेश को भरमाने वाले बयान पर प्रतिक्रिया पूछी गई तो वो भड़क गए।
आयोग ने अखिलेश कैंप के लोगों को निर्देश दिए कि पार्टी के विधायकों की जो सूची आयोग में वो दे रहे हैं, उनकी कॉपी दूसरे पक्ष यानी मुलायम सिंह यादव को दी जाए।
अखिलेश खेमे की तरफ से नेताजी को उनके दिल्ली और लखनऊ दफ्तर में कागजात भेजे गए, लेकिन कहीं भी किसी ने भी ये कागजात स्वीकार नहीं किए।
बेटे के गुट ने बकायदा लखनऊ में मीटिंग की और विधायकों, एमएलसी से हलफनामें पर दस्तखत कराए गए कि किनके साथ हैं।
इसके बाद रामगोपाल ने दावा किया कि 2212 विधायक, 68 एमएलसी और 15 सांसद उनके पाले में हैं।
रामगोपाल ने कहा कि जहां अखिलेश हैं वहीं असली समाजवादी पार्टी है। cycle