जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए COP28 में रविवार को एक मसौदा दस्तावेज जारी किया गया। वैश्विक अनुकूलन लक्ष्यों पर जारी यह मसौदा तय करेगा कि गरीब देश सूखे गर्मी और तूफान जैसे जलवायु परिवर्तन से प्रेरित मौसम की चरम स्थितियों का सामना करने के लिए खुद को कैसे तैयार करें।
मसौदे में एक विकल्प के मुताबिक़ वर्ष 2025 तक जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रत्येक देश की संवेदनशीलता का आकलन करने के साथ 2027 तक चरम मौसम की घटनाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करने का प्रस्ताव है। जबकि इस सम्बन्ध में दूसरा विकल्प, देशों के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं के साथ आना और उन्हें 2030 तक लागू करना है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में अनुकूलन के लिए मसौदा दस्तावेज में आवश्यक वित्त पोषण को ‘‘अपर्याप्त’’ बताया गया है। पिछले महीने जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़, विकासशील देशों को जलवायु अनूकूलन के लिए प्रत्येक वर्ष 215-387 अरब डॉलर की आवश्यकता है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव गरीब और विकासशील देशों को झेलना पड़ता है।
COP28: जलवायु परिवर्तन मुद्दों से निपटने की पहल, हर देश के लिए लक्ष्य निधारित करने वाला दस्तावेज जारीhttps://t.co/cIQh8B3L5V
— Amar Ujala (@AmarUjalaNews) December 10, 2023
सम्मलेन के दौरान जीवाश्म ईंधन समाप्त करने पर जोर दिया गया। जबकि जीवाश्म ईंधन के भविष्य की भूमिका पर गहरे अंतर्राष्ट्रीय विभाजन सामने आए। अमरीका और यूरोपीय संघ सहित छोटे द्वीप वाले 80 से अधिक देशों का गठबंधन एक समझौते पर जोर दे रहा है, जिसमें जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की बात शामिल है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मुख्य स्त्रोत है।
12 दिसंबर को शिखर सम्मेलन का समापन है। कॉप-28 के अध्यक्ष सुल्तान अल-जबर का कहना है कि अब सभी पक्षों के लिए रचनात्मक रूप से जुड़ने का समय आ गया है। असफलता कोई विकल्प नहीं है।
बताते चलें कि वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत बढ़ते तापमान के वैश्विक लक्ष्य की अवधारणा पेश की गई, जिसका उद्देश्य वैश्विक ताप वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक (1850-1900) समय के स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है।