लंदन: एक नए अध्ययन के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में समुद्र के रंग में स्पष्ट बदलाव आया है और इसका संभावित कारण मानवीय गतिविधियों के द्वारा होने वाला जलवायु परिवर्तन है।
यूनाइटेड किंगडम के नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर और संयुक्त राज्य अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक बयान में कहा कि दुनिया के 56 प्रतिशत से अधिक महासागरों का रंग बदल गया है, जिसे प्राकृतिक परिवर्तन नहीं कहा जा सकता है। यह सतही महासागरों के भीतर पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव का संकेत देता है।
इन परिवर्तनों में जलवायु परिवर्तन के योगदान को समझने के लिए उन्होंने दो परिदृश्यों के तहत पृथ्वी के महासागरों पर फोकस किया। इनमे से एक के लिए एक ग्रीनहाउस गैसों के साथ और दूसरा उनके बिना डटकीविक्ज के 2019 मॉडल का उपयोग करते हुए किया गया।
बुधवार को नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, भूमध्य रेखा के करीब उष्णकटिबंधीय महासागर पिछले दो दशकों में हरे हो गए हैं। यह परिवर्तन उनके परिवेश में आये परिवर्तन को भी दर्शाता है।
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— Dainik Jagran (@JagranNews) July 17, 2023
शोधकर्ता इस बदलाव को पृथ्वी की प्रणाली में कोई रैंडम बदलाव नहीं मानते हैं। उनके मुताबिक़ यह मानवजनित जलवायु परिवर्तन के अनुरूप है। एमआईटी के पृथ्वी , वायुमंडलीय व ग्रह विज्ञान विभाग के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक डटकीविजक्ज ने इसे भयावह बताया है।
गौरतलब है कि समुद्र के पानी का हरा रंग फाइटोप्लांकटन में मौजूद हरे वर्णक क्लोरोफिलके कारन होता है। क्लोरोफिल ऊपरी महासागर में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले पौधे जैसे रोगाणु है। इसलिए विज्ञानी जलवायु परिवर्तन पर उनकी प्रतिक्रिया देखने के लिए फाइटोप्लांकटन की निगरानी करने के इच्छुक हैं।