सुप्रीम कोर्ट ने दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को प्रतिबंधित करने वाले मध्य प्रदेश सरकार के नियम को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने पिछले वर्ष दिसंबर में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवाओं के नियम 6 (ए) को रद्द कर दिया गया है, क्योंकि यह न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति के लिए दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को वंचित करता है।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि दृष्टिबाधित उम्मीदवार न्यायिक सेवाओं के तहत पद के लिए चयन में भाग लेने के पात्र हैं। शीर्ष अदालत का यह फैसला न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दृष्टिबाधित उम्मीदवार न्यायिक सेवाओं के तहत पद के लिए चयन में भाग लेने के लिए पात्र हैं। न्यायमूर्ति महादेवन के मुताबिक़, न्यायालय ने इसे सबसे महत्वपूर्ण मामले के रूप में माना और संवैधानिक ढांचे और संस्थागत विकलांगता न्यायशास्त्र पर भी बात की।
कोर्ट का कहना है कि केवल विकलांगता के कारण किसी भी उम्मीदवार को विचार से वंचित नहीं किया जा सकता है। इस संबंध में न्यायमूर्ति महादेवन का कहना था समावेशी ढांचा प्रदान करने के लिए राज्य की ओर से सकारात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। अपनी बात में उन्होंने कहा कि अधिकार आधारित दृष्टिकोण के लिए यह आवश्यक है कि दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं के अवसरों की तलाश में किसी भी तरह के भेदभाव का सामना न करना पड़े।
इस बारे में बोलते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने इस फैसले को न्यायमूर्ति महादेवन द्वारा दिया गया एक ऐतिहासिक फैसला बताया कहा कि वह इसे खुली अदालत में कहने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सेवा परीक्षा नियम 1994 के नियम 6 ए के संबंध में एक स्वत: संज्ञान मामले में फैसला सुनाया।
न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा कि कोई भी ऐसा अप्रत्यक्ष भेदभाव जिसके नतीजे में दिव्यांग व्यक्तियों को बाहर रखा जाता है, चाहे वह कटऑफ के माध्यम से हो या फिर प्रक्रियात्मक बाधाओं के कारण, वास्तविक समानता को बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।
पीठ के मुताबिक़, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांग अभ्यर्थियों की पात्रता का आकलन करते समय उन्हें सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।