लंदन: ब्रिटेन में घावों को भरने के लिए आधिकारिक तौर पर भूरे और सफेद कीड़े (मैगट्स और लार्वा) का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन, एनएचएस द्वारा अनुमोदित है।
इसे लार्वा थेरेपी कहा जाता है। इस थेरेपी का उल्लेख हजारों साल पुराने साहित्य में मिलता है और गहरे घावों को भरने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था। ब्रिटेन में इसका उपयोग अब 50% बढ़ गया है। इस थेरेपी में टीबैग्स से भरे कीड़े को घाव पर लगाया जाता है।
2004 में ग्रेट ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा द्वारा लार्वा थेरेपी को अनुमोदित किया गया था क्योंकि यह एक कम लागत वाला बेहद प्रभावी उपचार है।
पिछले कुछ सालों में फोड़े-फुंसियों और गहरे घावों में एंटीबायोटिक्स फेल हो रहे हैं और यही वजह है कि डॉक्टर इस अजीबोगरीब इलाज को अपना रहे हैं।
लार्वा थेरेपी को 2004 में ग्रेट ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा द्वारा अनुमोदित किया गया था क्योंकि यह एक कम लागत वाला बेहद प्रभावी उपचार है। इस संबंध में बायोमोंड नाम की कंपनी हर साल विभिन्न अस्पतालों में कीड़ों से भरे 9000 बैग की आपूर्ति करती है, जिन्हें बायोबैग (जैविक बैग) कहा जाता है।
कभी-कभी ये कीड़े अंतिम उपाय के रूप में उपयोग किए जाते हैं। ऐसा तब किया जाता है जब घाव ठीक नहीं होता है और एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर होने लगती हैं।
देखने या सुनने में ये एक घिनौना उपचार लग सकता है लेकिन अपने घाव से परेशां मरीज़ के लिए लार्वा थेरेपी एक बड़ा सहारा है। यहां तक कि डॉक्टर और नर्स भी इसके पक्ष में अपनी राय देते हैं। कई विशेषज्ञों ने कीड़ों के उपचार को बहुत उपयोगी बताया है।