इलाहबाद : अनूप कुशवाहा खुद को इलाहाबाद की बीजेपी यूनिट का सबसे छोटा पदाधिकारी बताते हैं। भगवा चोला, चंदन और तिलक लगाकर वह तेज बहादुर सप्रू मार्ग स्थित पार्टी के दफ्तर पहुंचते हैं तो उन्हें ताला लगा मिलता है। Allahabad
तुरंत घबराकर वह फोन मिलाते हैं-अरे भाई, नींद खुल गई। जय सियाराम। आज प्रधानमंत्री की रैली है। अॉफिस खुला भी नहीं है। ताला तोड़ दूं क्या।
कुशवाहा की ही तरह बाकी बीजेपी कार्यकर्ताओं की आवाज में एेसी ही निराशा दिखाई पड़ रही है।
जिन्होंने पार्टी के लिए जी तोड़ मेहनत की है, वह भी अपना आत्मविश्वास खो रहे हैं।
हालांकि सीट बंटवारे को लेकर मायूसी पहले की तरह मुखर नहीं है। बीजेपी समर्थकों को लगता है कि उन्हें काफी समझौते करने पड़ेंगे। जबकि कुछ इस बात से निराश हैं कि पार्टी की तरफ से उनके पुरस्कार अब तक नहीं आए हैं।
जमीनी स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जलवा बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच कायम है। जबकि कई बड़े बीजेपी नेताओं को यकीन नहीं है कि यह वोट में तब्दील होगा या नहीं।
इलाहाबाद दक्षिण के बीजेपी के चुनाव प्रभारी सुनील जैन कहते हैं कि उत्तर प्रदेश का चुनाव विकास पर नहीं बल्कि जाति और हवा पर लड़ा जाता है और हवा हमारे पक्ष में है। हालांकि 2014 लोकसभा चुनावों जैसी लहर तो नहीं है, लेकिन इसमें अंतर्धारा है।
कोई भी बीजेपी नेता यह दावा नहीं कर सकता कि जाति समीकरण बीजेपी के हक में हैं। इलाहाबाद में 12 सीट हैं।
कुछ इलाकों में बीजेपी से ऊंची जाति के ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ इस बात से निराश हैं कि उनकी कद्र नहीं की गई। वहीं बनिया नोटबंदी के कारण गुस्सा हैं।
गैर यादव और ओबीसी अब भी असमंजस में हैं और एेसा भी कोई संकेत नहीं मिल रहा कि गैर जाटव दलित बड़ी संख्या में बीजेपी के साथ हैं।
पार्टी के एक धड़े को इस बात का डर है कि कुछ दलित समुदाय वापस बीएसपी के साथ जा सकते हैं। वहीं सपा और बसपा को भी नहीं पता कि मुस्लिम कैसे वोट करेंगे। रजरापुर गांव के चुन्नीलाल कहते हैं कि हर क्षेत्र में लड़ाई अलग है।
कहीं बीजेपी और बीएसपी के बीच लड़ाई है तो कहीं सपा और बसपा के बीच और कहीं सपा-कांग्रेस और बीजेपी के। यह संकेत करता है कि नतीजे असमंजस भरे या त्रिशंकु विधानसभा वाले हो सकते हैं।
वहीं बीजेपी के पास सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के अलावा कुछ और नहीं है। लेकिन लोगों को भी पता है कि मोदी यूपी के सीएम नहीं बनने जा रहे।