मैं इलाहाबाद हूं. गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की वजह से मैं प्रयागराज भी कहलाता हूं. रामचरित मानस जैसे पौराणिक ग्रंथों में भी मेरा जिक्र है. तब राजाओं-महाराजाओं का अभिषेक संगम के ही जल से हुआ करता था. आज से 444 साल पहले 1574 में मुगल बादशाह अकबर ने यहां अपना नगर बसाया और मेरा नाम इलाहाबाद रख दिया गया. तब से लेकर आज तक मैं इलाहाबाद के नाम से ही जाना जाता हूं. इसका जिक्र अकबरनामा और आईने अकबरी में भी है.
आजादी की लड़ाई से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के पठन-पाठन का मुख्य केंद्र रहा हूं मैं. हिंदी के कई सहित्यकार मेरे सामने ही पैदा हुए और बुलंदियों पर पहुंचे. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का भी जन्म मेरे ही आंगन में हुआ. विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला कुंभ भी मेरे ही सरजमीं पर लगता है. लेकिन एक बार फिर मैं प्रयागराज होने जा रहा हूं. 2019 का कुंभ भी इलाहाबाद नहीं प्रयागराज में ही होगा.
इलाहाबाद की धरती अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जानी जाती है. अपनी ऐतिहासिक धरोहर को समेटे यह धार्मिक शहर जल्द ही प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा. साधु-संतों और आम लोगों की वर्षों से चली आ रही इस मांग को यूपी के गवर्नर राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मान लिया है. सरकार के इस फैसले से आम लोगों से लेकर साधु-संतों में खुशी का माहौल है.
नाम बदलने पर सियासत शुरू
हालांकि मेरा नाम बदले जाने को लेकर अब राजनीति भी शुरू हो गई है. प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही मेरा नाम बदले जाने के कयास लगाये जा रहे थे. इसकी शुरुआत 2018 के माघ मेले में हो चुकी थी. जबकि सरकार ने माघ मेले के दौरान कुंभ मेले की ब्राण्डिंग प्रयागराज के नाम से की थी. इसके साथ ही योगी सरकार ने प्रयाग में हर साल लगने वाले माघ मेले और कुंभ मेले के आयोजन के लिए जिस प्राधिकरण का गठन किया, उसका नाम भी प्रयागराज मेला प्राधिकरण रखा गया. प्रयागराज किए जाने की मांग साधु संतों ने विश्व हिन्दू परिषद की धर्म संसद में जनवरी में उठाया भी था. उस समय भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समय आने पर इस मामले में निर्णय होने की बात कही थी. लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ की मांग को राज्यपाल राम नाईक ने मंजूरी दे दी है. उन्होंने सीएम योगी को दशहरे से पहले कैबिनेट बैठक बुलाकर मेरा नाम इलाहाबाद से प्रयागराज करने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास करने का सुझाव दिया है.
त्रेता युग में भी प्रयागराज ही था नाम
इलाहाबाद का नाम बदले जाने के फैसले को मेयर अभिलाषा गुप्ता नंदी ने सही बताया, तो वहीं आम लोगों की इस मुद्दे पर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिल रही है. वहीं इतिहासकार बताते हैं कि इलाहाबाद का प्राचीन नाम प्रयागराज ही है. त्रेता युग में भी इसका नाम प्रयागराज था. इसके साथ ही प्रयाग को तीर्थों का राजा भी कहा जाता है. उनके मुताबिक इलाहाबाद का नाम बदलने का फैसला सही है. हालांकि इस मुद्दे को लेकर अब सियासत भी शुरू हो गई है. सपा के नेताओं ने नाम बदले जाने को बीजेपी का सियासी खेल बताते हुए इस फैसले का विरोध करने की बात कही है.
सपा ने किया विरोध का ऐलान
फूलपुर लोकसभा सीट से सपा सांसद नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल ने इलाहाबाद शहर का नाम बदलकर प्रयागराज किए जाने का विरोध करने का ऐलान किया है. उन्होंने कहा है कि नाम बदला जाना उतना जरूरी नहीं है, जितना जरूरी कुंभ के नाम पर उजाड़े गए लोगों को बसाना है. सपा सांसद ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने जनता का विश्वास खो दिया है. इसलिए दोबारा विश्वास हासिल करने के लिए इस तरह के काम कर रही है. सपा सांसद ने इलाहाबाद का नाम बदलकर राजनीतिक फायदे लेने का भी आरोप लगाया है.
समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता निधि यादव का कहना है कि प्रदेश सरकार जनता को मुद्दों से भटकाने के लिये नाम बदलने की राजनीति कर रही है. जबकि समाजवादी पार्टी के एमएलसी वासुदेव यादव का कहना है कि बीजेपी सरकार जनता का गरीबी और बेरोजगारी के मुद्दे से भटकाने के लिए समय-समय पर नाम बदलने का काम करती है. वहीं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ प्रोफेसर आरएस दुबे का कहना है कि इलाहाबाद का नाम प्रयागराज त्रेता युग से चला आ रहा है, जिसका जिक्र रामायण औऱ दूसरे पुराणों में भी है. उनका यह भी कहना है कि इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करके सरकार ने अच्छा काम किया है.