भारत में पिछले कई वर्षों सेगर्मी का असर गम्भीर होने के साथ असहनीय होता जा रहा है। बढ़ते तापमान के चलते होने वाली मौतें, हीट वेव के कारण बढ़ती बीमारिया और स्कूलों का बन्द होना आम हो गया है।
इस वर्ष भी गर्मी का मौसम उत्तर भारत सहित पूरे देश के लिए संकट भरा बीत रहा है। दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में पारा 50°C के नज़दीक पहुँच गया और उमस ने बेहाल कर दिया।भारत में झुलसा देने वाली गर्मी का मौसम करोड़ों लोगों के लिए एक चुनौती बन जाता है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के भारत कार्यालय के प्रमुख, बालकृष्ण पिसुपति का कहना है- “सभी देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाना शुरू भी करें, तब भी तापमान में चरम उतार-चढ़ाव अब लम्बे समय तक बना रहने वाला है।”
‘पैसिव कूलिंग’ में ऊर्जा की ख़पत नहीं होती है और एयर कंडीशनिंग की तरह ये उपाय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वजह भी नहीं बनते हैं, जिससे जलवायु संकट और नहीं बढ़ता।
गर्मी के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए यह ज़रूरी है कि स्वाभाविक, पर्यावरण अनुकूल शीतलन उपायों को प्रोत्साहन दिया जाए और बिना बिजली या मशीनों के उपयोग के वातावरण को ठंडा किया जाए।
पेड़ों की छाँव देने वाले फ़ुटपाथ, हवादार इमारतें, बस टर्मिनल की ठंडी छत, ऐसे कई स्वाभाविक उपाय हैं जिन्हें तपतपाते मौसम से लोगों को राहत दिलाने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है और इससे जलवायु चुनौती से निपटने में मदद भी मिल रही है।
छायादार पेड़, हरित स्थल का निर्माण, ठंडे फ़र्श और सूरज की रौशनी को परावर्तित करना। बेहतर शहरी बसावट और प्रकृति-आधारित ये कुछ ऐसे ही समाधान हैं ताकि घर, इमारत या बाहर खुले में तापमान को कम रखा जा सके।
बालकृष्ण पिसुपति कहते हैं- “हम जिस स्तर की भीषण गर्मी देख रहे हैं, उससे निपटने के लिए भारत के लोगों को ऐसे उपायों की ज़रूरत है जो जलवायु संकट को और न बढ़ाएँ।”
उन्होंने कहा कि यही वो समय है, जहाँ पर नैसर्गिक शीतलन तकनीकें (passive cooling) महत्वपूर्ण समाधान बन सकते हैं।
‘पैसिव कूलिंग’ में ऊर्जा की ख़पत नहीं होती है और एयर कंडीशनिंग की तरह ये उपाय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वजह भी नहीं बनते हैं, जिससे जलवायु संकट और नहीं बढ़ता।
स्वाभाविक शीतलन के क्षेत्र में भारत विश्व स्तर पर अग्रणी बनकर उभरा है, इन उपायों को राष्ट्रीय नीतियों और शहरी नियोजन में शामिल किया है, जिसमें से कई योजनाओं में UNEP ने अहम सहयोग प्रदान किया है।
राजधानी दिल्ली को दुनिया के सबसे गर्म महानगरों में से एक में गिना जाता है। इस वर्ष मई की शुरुआत में ही यहाँ का तापमान 50°C तक महसूस हुआ। उमस ने लोगों को बेहाल कर दिया।
“Cool Coalition” नामक पहल के तहत, भारत सरकार के साथ मिलकर UNEP के नेतृत्व में दिल्ली के व्यस्त कश्मीरी गेट अन्तरराज्यीय बस अड्डे की छत को “ठंडी छत” में बदला जा रहा है।
यह छत लगभग 1.5 लाख वर्ग फुट में फैली है और इसे ऐसी सतह से ढका जाएगा जो 80 फ़ीसदी तक सौर ऊष्मा को परावर्तित करेगी, जिससे हर दिन एक लाख यात्रियों को राहत मिलने की उम्मीद है।
तमिलनाडु में UNEP, कई सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर ऐसे वित्तीय मॉडल तैयार कर रहा है, जिससे सरकारी आवासों में पैसिव कूलिंग को लागू करना आसान हो सके।
हालाँकि देश में अभी भी अधिकाँश शहरों में हीट मैपिंग का कोई मानकीकृत या वैज्ञानिक तरीक़ा नहीं है, जोकि गर्मी से निपटने की योजना बनाने के लिए आवश्यक है।
इस चुनौती से निपटने के लिए UNEP और साझेदार, केन्द्र व राज्य सरकारों के साथ मिलकर शहर के सबसे गर्म इलाक़ों की पहचान करने के लिए नई रणनीतियाँ विकसित कर रहे हैं। साथ ही ऐसे दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं, जिससे तापमान घटाने वाली परियोजनाओं में आपदा राहत कोष का इस्तेमाल किया जा सके।