ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न अत्यधिक गर्मी ने गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं को और बढ़ा दिया है।
इससे पहले चिकित्सा विज्ञान ने समय से पहले जन्म, मृत जन्म, जन्म संबंधी अन्य समस्याएं जिनमे प्रेग्नेंसी के समय मधुमेह जैसी समस्याओं को गर्भावस्था के दौरान गर्मी के संपर्क से जोड़ा है।
नेचर मेडिसिन में 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन में यह भी पाया गया कि गर्मी की तीव्रता बढ़ने से गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं विकसित होने की संभावना 1.25 गुना बढ़ जाती है।
अमरीकी शोध समूह क्लाइमेट सेंट्रल ने अपने हालिया अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की है कि 2020 से अब तक कितनी गर्भवती महिलाएं अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आई हैं और इसके लिए किस हद तक जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि 247 देशों और क्षेत्रों में से यह अध्ययन 222 में किया गया था, जिससे पता चला कि जलवायु परिवर्तन ने पिछले 5 वर्षों में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले खतरनाक गर्म दिनों की औसत वार्षिक संख्या को दोगुना कर दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, गर्म दिनों की औसत वार्षिक संख्या में सबसे अधिक वृद्धि विकासशील देशों जैसे कि कैरीबियाई, मध्य और दक्षिण अमरीका, प्रशांत द्वीप समूह, दक्षिण पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में हुई है, जहां लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच सीमित है।
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने केवल संभावित खतरनाक गर्म दिनों में वृद्धि की जांच की तथा यह नहीं देखा कि गर्भवती महिलाएं गर्मी से किस हद तक प्रभावित होती हैं।
हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में पर्यावरण, प्रजनन और महिला स्वास्थ्य की एसोसिएट प्रोफेसर श्रुति महालिंगैया कहती हैं- “गर्भवती महिलाएं और उनके भ्रूण जलवायु संबंधी परिवर्तनों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, खासकर गर्मी और अत्यधिक गर्मी के समय।”
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में सहायक प्रोफेसर अन्ना बोनेल कहती हैं कि इस अत्यधिक गर्मी को सहने से गर्भवती माताओं को प्री-एक्लेमप्सिया और गर्भावधि मधुमेह जैसी उच्च जोखिम वाली स्थितियों के विकसित होने का अधिक जोखिम होता है। यह भ्रूण के विकास को भी प्रभावित करता है।
कुछ अध्ययनों ने अत्यधिक गर्मी के संपर्क को जन्म दोषों के बढ़ते जोखिम से जोड़ा है, जिसमें स्पाइनल बिफिडा जैसे न्यूरल ट्यूब दोष शामिल हैं।