वैश्विक आर्थिक वृद्धि की दर में पिछले साल के मुक़ाबले इस साल भी किसी बदलाव की उम्मीद नहीं है। संयुक्त राष्ट्र का एक नया अध्ययन वैश्विक आर्थिक वृद्धि की दर 2.8 फ़ीसदी होने के संकेत दे रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, व्यापारिक क्षेत्र में तनाव बरक़रार हैं, हालाँकि इस बीच मुद्रास्फीति में कमी और मौद्रिक दबाव घटने से कुछ राहत मिली है। साथ ही कर्ज़ के ऊंचे बोझ के अलावा भूराजनैतिक जोखिम से चुनौतियाँ भी बढ़ने की बात रिपोर्ट में कही गई है।
रिपोर्ट से खुलासा होता है कि विश्व अर्थव्यवस्था ने सिलसिलेवार चुनौतियों का सामना किया है, मगर इसकी रफ़्तार थम गई है। अब यह वैश्विक महामारी से पहले के वार्षिक औसत 3.2 प्रतिशत से कम बनी हुई है।
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने इस रिपोर्ट की प्रस्ताव में वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की पुकार लगाई है।
संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के लिए ‘विश्व आर्थिक स्थिति एवं सम्भावनाएँ 2025’ नामक अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
रिपोर्ट के मुताबिक़, दक्षिण एशिया सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला क्षेत्र साबित होने होने के संकेत दे रहा है। जहाँ वर्ष 2025 में जीडीपी वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जिसकी अगुवाई 6.6 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ भारत द्वारा की जाएगी।
दक्षिण एशिया में भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में बेहतर हालात के साथ यहाँ बाहरी मांग में गिरावट तथा कर्ज़ जैसी चुनौतियों की बात भी कही गई है। साथ ही यहाँ सामाजिक अशान्ति के जोखिम का भी हवाला दिया गया है।
पूर्वी एशिया में आर्थिक वृद्धि की दर इस साल 4.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जोकि मुख्यत: चीन के आर्थिक प्रदर्शन पर निर्भर है, जहाँ वृद्धि की रफ़्तार 4.8 प्रतिशत होने की सम्भावना है।
रिपोर्ट के अनुसार, योरोप में आर्थिक हालात में मामूली सुधार आने की उम्मीद है। यहाँ बीते वर्ष 2024 में जीडीपी की वृद्धि दर 0.9 प्रतिशत थी, जोकि 2025 में 1.3 प्रतिशत तक पहुँच सकती है।
योरोपीय क्षेत्र में मुद्रास्फीति में नरमी आने के साथ श्रम बाज़ारों का प्रदर्शन भी मज़बूत हुआ है, मगर उत्पादकता में कमज़ोरी और बुज़ुर्ग होती आबादी जैसे रुझानों से आर्थिक परिदृश्य पर असर हो रहा है।
संयुक्त राज्य अमरीका में इस साल आर्थिक वृद्ध की दर वर्ष 2024 में 2.8 प्रतिशत से घटकर 1.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसकी वजह श्रम बाज़ार में सुस्ती आने और उपभोक्ता व्यय की सुस्त रफ़्तार को बताया जा रहा है।
अफ़्रीका की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार पिछले वर्ष 3.4 प्रतिशत के आँकड़े से बढ़कर इस साल 3.7 प्रतिशत तक पहुँच सकती है, जिसकी एक वजह मिस्र, नाइजीरिया और दक्षिण अफ़्रीका में दर्ज किया गया सुधार है। हालाँकि हिंसक टकराव, कर्ज़ की ऊँची क़ीमतों और जलवायु सम्बन्धी चुनौतियों के कारण क्षेत्र की आर्थिक सम्भावनाओं पर अनिश्चितता बरक़रार है।
वैश्विक व्यापार में इस वर्ष 3.2 प्रतिशत का विस्तार होने का अनुमान है, जोकि एशिया से हुए मज़ूबत निर्यात और सेवा व्यापार में उछाल से सम्भव हो पाएगा।
दुनिया भर में मुद्रास्फीति में कुछ कमी आने की सम्भावना जताई गई है, और यह घटकर 3.4 प्रतिशत के आँकड़े पर पहुँच सकती है, जिससे व्यवसायों व घर-परिवारों को राहत मिलने की उम्मीद है।