22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है। आज का दिन देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की याद में मनाया जाता है।
गणितज्ञ रामानुजन ने गणित की कई चुनौतीपूर्ण समस्याओं का हल तलाशा मगर उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि साल 1914 में पाई (π) के लिए इनफिनिटी सीरीज का फार्मूला तलाश करना है। यह फार्मूला आज भी कई एल्गोरिदम का आधार होता है। उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर वृत्त विधि जिसे सर्किल मेथड कहते हैं, की खोज की थी।
उनके कामों की एक लंबी सूची है। उन्होंने मॉक थीटा फंक्शन पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। इसके अलावा साल 1729 को रामानुजन नंबर के रूप में जाना जाता है। यह वास्तव में दो संख्याओं 10 और 9 के घनों (क्यूब) का जोड़ है।
रामानुजन ने मात्र 33 साल की उम्र में गणित के चार हजार से अधिक ऐसे थ्योरम पर रिसर्च कर ली थी जिसे समझने में पूरी दुनिया के गणितज्ञों को वर्षों लगे। रामानुज को अक्तूबर 1918 में ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप मिली। यह फेलोशिप पाने वाले वह पहले भारतीय बने।
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुंभकोणम के सरकारी स्कूल से शिक्षा हासिल करने वाले रामानुज को शुरू में पढ़ने में रूचि नहीं थी। वह 12वीं की परीक्षा में दो-दो बार फेल हो गए थे।
रामानुजन ने साल 1912 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में बतौर क्लर्क नौकरी की। यहाँ एक अंग्रेज सहकर्मी ने उनमे गणित की अद्वितीय प्रतिभा देखी और उन्हें ब्रिटेन में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से जुड़े ट्रिनिटी कॉलेज के प्रोफेसर जी एच हार्डी से मिलने की सलाह दी।
उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी को गणित के कुछ फॉर्मूले पत्रों से भेजे और प्रभावित होकर प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को लंदन बुला लिया। अब प्रोफेसर हार्डी उनके मेंटर थे और दोनों ने मिलकर कई रिसर्च पेपर प्रकाशित किए।
साल 1916 में रामानुजन ने बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। साल 1917 में उनको लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी में जगह मिली और अगले ही साल गणित के क्षेत्र में रिसर्च के लिए रामानुजन को रॉयल सोसायटी में स्थान मिला।
मात्र 33 साल की उम्र में उन्होंने गणित के चार हजार से ज्यादा ऐसे थ्योरम पर रिसर्च कर ली थी जिसे समझने में पूरी दुनिया के गणितज्ञों को वर्षों लगे। रामानुजन को अक्तूबर 1918 में ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप मिली। यह फेलोशिप पाने वाले वह पहले भारतीय बने।
रामानुजन साल 1919 में लंदन से स्वदेश आ गए। खराब स्वास्थ्य हमेशा उनके लिए समस्या बना रहा। इस बीच उन्हें तपेदिक हो गई जो उस समय असाध्य मर्ज़ था। भारत आने के एक साल बाद 1920 में उनका निधन हो गया।
लेखक रॉबर्ट कैनिगल ने श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी लिखी, जिसका नाम है, द मैन हू न्यू इन्फिनिटी: अ लाइफ ऑफ द जीनियस रामानुजन। इस किताब पर 2015 में ‘द मैन हू न्यू इन्फिनिटी’ नाम से एक फिल्म बनी। इस फिल्म में देव पटेल ने रामानुजन का किरदार निभाया।