संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी ने इस सप्ताह प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक़, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वार्षिक मात्रा अपने अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गई है। जिसके नतीजे में तापमान में वृद्धि को टालने और जलवायु परिवर्तन के बदतरीन प्रभावों से बचने के लिए तत्काल क़दम उठाए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है।
यूएन एजेंसी की ‘Emissions Gap Report 2024’ में कहा गया है कि देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन पर जल्द से जल्द रोक लगानी होगी।
यूएन एजेंसी की यह रिपोर्ट कोलम्बिया के कैली शहर में आयोजित 16वें वैश्विक जैवविविधता सम्मेलन के दौरान जारी की गई है। संगठन की कार्यकारी निदेशक इंगेर ऐंडरसन ने इन बदतर हालात को जलवायु संबंधी कार्रवाई की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण समय बताया है।
आगे वह कहती हैं कि हमें बड़े स्तर पर और एक ऐसी गति से वैश्विक लामबन्दी करने की ज़रूरत है, जिसे पहले कभी नहीं देखा गया। साथ ही उन्होंने जलवायु संकल्पों के अगले दौर से ठीक पहले ‘अभी’ शुरूआत करने की बात पर ज़ोर दिया है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से दुनिया को तापमान में 3.1 डिग्री की विनाशकारी वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
बढ़ते तापमान पर यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक ने आगाह किया कि इन हालात की अनदेखी से पेरिस समझौते के अन्तर्गत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य व्यर्थ हो जाएगा। साथ ही उन्होंने दो डिग्री सेल्सियस से कम के लक्ष्य को भी गहन देखभाल कक्ष यानी आईसीयू में होना करार दिया है।
इस रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की स्थिति का आकलन करते हुए बताया गया है कि देशों द्वारा कार्रवाई संकल्पों और मौजूदा स्थिति में कितनी खाई है और पेरिस समझौते के अनुरूप, 1.5 डिग्री व 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या क़दम उठाए जाने होंगे।
यूएन विशेषज्ञों के अनुसार अगर देशों द्वारा वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2030 तक 42 फ़ीसदी की कटौती करने का संकल्प सामूहिक रूप से नहीं लिया, इसके अलावा 2035 तक 57 प्रतिशत की कटौती का लक्ष्य स्थापित नहीं किया गया तो ऐसे में तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना असंभव होगा।
रिपोर्टसे से खुलासा होता है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भारी कटौती के अभाव में दुनिया को तापमान में 3.1 डिग्री की विनाशकारी वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट एक ऐसे समय में प्रकाशित हुई है जब देशों की सरकारें अपने संकल्पों को पूरा कर पाने में विफल साबित हो रही हैं।