सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने न्याय की देवी की मूर्ति और शीर्ष अदालत के प्रतीक में बदलाव पर आपत्ति जताई है। इस आपत्ति का कारण बिना किसी विचार-विमर्श के यह क़दम उठाना बताया है।
एसोसिएशन का कहना है कि वे न्याय प्रशासन के समान भागीदार हैं लेकिन बदलाव के इन फैसलों की उन्हें खबर नहीं।
एससीबीए यानी सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल की अध्यक्षता में कार्यकारी समिति द्वारा सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के इस ‘एकतरफा’ फैसले पर नाराजगी जाहिर की गई है। एससीबीए ने प्रस्तावित संग्रहालय का विरोध करते हुए लाइब्रेरी और कैफे की मांग की है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस माह की 22 तारीख को एक प्रस्ताव पारित करते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने देखा है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एकतरफा रूप से कुछ आमूलचूल बदलाव किए गए हैं। जैसे इसके प्रतीक चिह्न को बदलना, बार के साथ परामर्श के बिना न्याय की देवी की प्रतिमा को बदलना।
आगे इस प्रस्ताव में कहा गया कि हम न्याय के प्रशासन में समान हितधारक हैं, लेकिन जब इन परिवर्तनों का प्रस्ताव रखा गया था, तो उन्हें कभी भी हमारे ध्यान में नहीं लाया गया था।
प्रस्ताव में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने खुद को इन बदलावों के औचित्य से पूरी तरह अनजान बताया साथ ही ये भी कहा कि बार बॉडी इन बदलावों के पीछे के तर्क को लेकर ‘अनजान’ है।
सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन ने कैफे और पुस्तकालय बनवाए जाने का अनुरोध करते हुए अपने प्रस्ताव में पूर्व जजों के पुस्तकालय में एक संग्रहालय का प्रस्ताव रखे जाने पर भी ऐतराज जताया है।